भूजल पर समाज की निर्भरता बढ़ती ही जा रही है। गहरे से गहरे बोरवेल
खोद-खोदकर पीने के लिए तथा बहुत बड़ी मात्रा में खेती के लिए भूजल उलीचा जा रहा है।
मगर भूजल विशेषज्ञ वास्तव में नहीं जानते कि धरती के गर्भ में कितना पानी है। भूजल
की मात्रा और खासकर नवीकरणीय भूजल की मात्रा का अंदाज़ लगाने के लिए कनाडा स्थित
विक्टोरिया विश्वविद्यालय के भूजल वैज्ञानिक टॉम ग्लीसन और उनके साथियों ने एक
अध्ययन किया। नवीकरणीय भूजल उस भूजल को कहते हैं जिसकी क्षतिपूर्ति बारिश व बर्फ
पिघलने के ज़रिए छोटे अंतराल में हो जाती है।
भूजल का पता लगाने का जो तरीका ग्लीसन की टीम ने अपनाया वह अनोखा था।
पिछले दशकों में पृथ्वी पर कई हाइड्रोजन बमों का परीक्षण किया गया है। इन हथियारों
के विस्फोट के दौरान हाइड्रोजन का एक समस्थानिक ट्रिशियम भी बनता है और वातावरण
में फैल जाता है। बारिश और पिघलते बर्फ के साथ यह भूजल में पहुंचता है।
तो ग्लीसन के दल ने माना कि जिस भूजल में ट्रिशियम की बढ़ी हुई मात्रा
पाई जाए वह हाल ही में यानी 50 साल के अंदर भूजल भंडार में पहुंचा
होगा क्योंकि ज़मीन की सतह पर परमाणु परीक्षण 50 वर्षों से किए
जा रहे हैं।
ग्लीसन के दल को भूजल के ऐसे 3800 नमूने मिले
जिनमें ट्रिशियम की मात्रा का मापन किया गया था। उन्होंने इन नमूनों के आधार पर यह
पता लगाने की कोशिश की कि अलग-अलग वाटरशेड्स में धरती के नीचे विभिन्न गहराइयों पर
कितना पानी है।
उन्होंने पाया कि भूजल भंडार वाकई बहुत विशाल है। सतह से 2
किलोमीटर की गहराई तक धरती की पर्पटी में 230 लाख घन
किलोमीटर पानी मौजूद है। यह मात्रा 40 साल पहले लगाए गए एक अनुमान से मेल
खाती है। मगर चिंताजनक बात यह है कि इसमें से अधिक से अधिक 6 प्रतिशत (या
ज़्यादा संभावना है कि मात्र 1.5 प्रतिशत) ही नवीकरणीय है। यह पानी
पिछले 50 सालों में धरती में पहुंचा है। धरती में मौजूद शेष पानी बहुत गहराई
पर है या इतना बिखरा हुआ है कि वह लगभग अनवीकरणीय माना जा सकता है।
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