एमएस स्वामीनाथन
दृष्टिकोण. कृषि क्षेत्र में लगभग तीन दशकों की संतुलित वृद्धि के बाद पिछले दस सालों से उत्पादन और उत्पादकता दोनों स्थिर होती जा रही है। योजना आयोग द्वारा तैयार ११वीं योजना के दस्तावेज में भी कृषि क्षेत्र में तकनीकी और विस्तारपरक मंदी का जिक्र किया गया है। दस्तावेज में साफतौर पर कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षो से कृषि क्षेत्र में न तो किसी नई तकनीक का आगमन हुआ है और न ही कृषि क्षेत्र का विस्तार हो पा रहा है। नतीजतन हरित क्रांति की प्रक्रिया में मंदी के लक्षण स्पष्ट दिखने लगे हैं। ऐसे में कृषि क्षेत्र की प्रगति को बनाए रखने और इस क्षेत्र में कार्यशील पुरुष और महिलाओं के बीच नई ऊर्जा का संचार करने के लिए हमें एक त्रि-स्तरीय रणनीति को अपनाने की आवश्यकता है।
इस रणनीति के तहत पहला कदम यह होना चाहिए कि हरित क्रांति के हृदय स्थल रहे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में हरित क्रांति के दौरान प्राप्त की गई सफलता को बनाए रखा जाए। ये क्षेत्र भू-जल स्तर में गिरावट, प्रदूषण और मिट्टी के लवणीकरण सरीखी पर्यावरणीय समस्याओं के साथ-साथ आर्थिक समस्याओं जैसे फसलों की प्रतिकूल कीमतों-पैदावार के जोखिम से भी जूझ रहे हैं। यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर कृषि की पर्यावरणीय स्थिति और अर्थव्यवस्था गलत दिशा में जाती है, तो कृषि के सही दिशा में जाने का कोई भी मौका सामने नहीं होगा।
हरित क्रांति के हृदय स्थल अब भी हमारे खाद्य सुरक्षातंत्र के मुख्य आधार हैं। आज भी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के लिए इन क्षेत्रों से बहुत बड़ी मात्रा में गेहूं और चावल खरीदा जाता है। इसलिए आने वाले समय में हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए कि कृषि के संरक्षण द्वारा इन क्षेत्रों में क्रांति के लाभ को हर कीमत पर बचाए रखा जाए। यह कार्य केवल कृषि के संरक्षण से ही हो सकता है और पर्यावरणीय स्थिति को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाए बिना ही उत्पादकता की वृद्धि को निरंतर बनाए रखा जा सकता है।
रणनीति का दूसरा कदम तकनीक के लाभ को नए क्षेत्रों, विशेषकर पूर्वी भारत और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में विस्तार से संबंधित है। कृषि उत्पादन के मामले में पूर्वी भारत एक बड़ा भंडार है, जिस पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है। पूर्वी क्षेत्र पर्याप्त वर्षा आच्छादित है, लेकिन दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से इस क्षेत्र में भारी वर्षा और बाढ़ की स्थिति भी आ जाती है। इसलिए इस क्षेत्र में वर्षा जल के साथ-साथ भूमि जल स्तर का कृषि कार्यो में संयुक्त रूप से उपयोग करना संभव होगा।
इस क्षेत्र में एक नई कृषि पद्धति को अपनाने की जरूरत है, जिससे गेहूं, चावल, मक्के के साथ अन्य फसलों की उत्पादकता पर्यावरण के संरक्षण और मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखते हुए बढ़ाई जा सके। इकोलॉजी को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाए बिना नई तकनीक के प्रयोग से सिंचाई के जल और डीजल का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है, जिससे कि आय और फसलों की सुरक्षा के साथ अच्छी पैदावार हो सके। इसलिए देश की यह उच्च प्राथमिकता है कि पर्याप्त वष्र वाले क्षेत्रों में कृषि कार्यो का संरक्षण किया जाए ।
रणनीति का तीसरा कदम नए क्षेत्रों के विकास से लाभ कमाने से संबंधित है। इसके लिए जरूरी है अनाज के नए पौधों, फसलों की विविधता और शस्य गहनता की नई तकनीकों को पशुधन के साथ इंटीग्रेटेड फार्मिग से जोड़ना। फसल अर्थव्यवस्था में पशुधन को जोड़ने से आर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिलेगा। जिन किसानों के पास पशुधन नहीं हैं, उनके लिए हरित क्रांति की तकनीकों को प्रस्तुत किया जा सकता है। आर्गेनिक फार्मिग में खनिज प्रधान उर्वरकों और रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग पूर्णतया वर्जित करना होगा। साथ ही आर्गेनिक फार्मिग में जेनेटीकली मोडीफाइड फसलों की प्रजातियों के प्रयोग की भी अनुमति नहीं होती है।
दूसरी तरफ हरित खेती में पौष्टिकता की आपूर्ति और कीट प्रबंधन के लिए खनिज उर्वरकों और रासायनिक कीटनाशकों के थोड़े और आवश्यक प्रयोग की सीमित अनुमति होती है। एक हेक्टेयर या उससे कम जोत वाले किसानों की बहुलता को देखते हुए उनके लिए हरित खेती पर्यावरणीय रूप से भी एक उपयुक्त आर्गेनिक विधि साबित होगी। इन तीनों रणनीति के परिचालन की शर्तो में कृषि संरक्षण और बायोइंडस्ट्रियल वॉटरशेड की स्थापना को शामिल करते हुए इन्हें बढ़ावा दिया जाए। इस प्रक्रिया से हमारे देश में स्थित प्रत्येक वाटरशेड नौकरियों और आय से जल को जोड़ने के लिए प्रभावी बायोइंडस्ट्रियल वॉटरशेड भी बन जाएगा।
लाभप्रद मार्केटिंग के अवसर सुनिश्चित होने पर वॉटरशेड के आधार पर बहुत से छोटे उद्यम स्वयं सहायता समूहों द्वारा पुरुषों और महिलाओं के लिए शुरू किए जा सकते हैं। आज हमारी कृषि के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती गैर-कृषि क्षेत्र में नौकरियों की गति को बढ़ाने की है। बायोइंडस्ट्रियल वॉटरशेड कृषि और गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों में आय की वृद्धि और काम की सुरक्षा को नए अवसरों के आधार पर मुहैया कराएगी। हमारे देश में कुपोषण की व्यापकता का कारण बाजार में खाद्य पदार्थो की कमी न होकर ग्रामीण इलाकों में लोगों की क्रय-क्षमता का कम होना है। ऐसे में बायोइंडस्ट्रियल वॉटरशेड की यह प्रक्रिया हमारे देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में मददगार होगी।
किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं और कृषि क्षेत्र में बढ़ रहे दुख व कष्ट को हम एक दर्शक की तरह देखते नहीं रह सकते। इसे समझते हुए कृषि क्षेत्र में एक नवीकरण प्रोग्राम की शुरुआत की महती आवश्यकता है जो कि इस क्षेत्र में अब तक प्राप्त की गई उपलब्धियों को स्थायित्व तो प्रदान करे ही, साथ ही और नए-नए क्षेत्रों में इस उपलब्धि का प्रचार-प्रसार भी करे। उद्देश्य यही होना चाहिए कि वे हर संभावित कदम उठाए जाएं जो एग्रो-प्रोसेसिंग तथा गैर-कृषि क्षेत्रों में रोजगार के बड़े अवसर बनाने में सहायक हों।
दैनिक भास्कर से साभार Wednesday, February 13,
-लेखक राष्ट्रीय कृषक आयोग के अध्यक्ष रहे हैं और वर्तमान में संसद सदस्य हैं।
No comments:
Post a Comment