खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Sunday, April 20, 2008

आटे दाल के भाव

सेव्वी सौम्य मिश्रा
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.) ने अपनी खाद्य दृष्टिकोण रिपोर्ट में खाद्यान्नों के मूल्यों में आगामी 10 वर्षों में वृध्दि का अनुमान लगाया है। हाल ही के वर्षों में अधिकांश खाद्यान्नों की आपूर्ति में जहां कमी आई है वहीं भोजन, चारा व औद्योगिक उपयोग के बढ़ने से इनकी मांग में भी अत्यधिक वृध्दि हुई है। हालांकि 2007-2008 में वैश्विक खाद्य उत्पादन में 5 प्रतिशत की वृध्दि का अनुमान तो है परन्तु यह वृध्दि मक्का जो कि बायो ईंधन में इस्तेमाल होने वाला मुख्य खाद्यान्न है, के उत्पादन में होगी।
गेहूं - दक्षिण पश्चिम अमेरिका और उत्तरी चीन में ठंड के मौसम में गेहूं की कमजोर फसल के कारण फरवरी 2008 में गेहूं की कीमतों में 15 प्रतिशत की वृध्दि हुई है। दिसम्बर 2005 व दिसम्बर 2007 के मध्य गेहूं की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया और इस दौरान ये प्रतिटन 167 डालर से बढ़कर 381 डालर प्रतिटन तक पहुंच गई है। कुल मिलाकर यह वृध्दि ११५ प्रतिशत बैठती है। मूल्य वृध्दि का कारण विश्व में गेहूं के दूसरे सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता राष्ट्र आस्ट्रेलिया में पड़ने वाला अकाल है। आस्ट्रेलिया में सामान्यतया 25 मिलियन टन गेहूं पैदा होता है। जबकि इस वर्ष उत्पादन घटकर मात्र 9.8 मिलियन टन रह गया है। वहीं कनाडा, यूरोपियन यूयनियन, तुर्की और सीरिया में भी विपरीत मौसम की वजह से निर्यात में कमी आई है। गेहूं की मांग बायोईधन और चारे के रूप में बढ़ने से भी अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति प्रभावित हुई है। इस कमी की वजह से भारत को लगातार दूसरे वर्ष भी गेहूं आयात करना पड़ा है। 2007-2008 में भारत ने 0.68 मिलियन टन एवं 2006-2007 में 5.8 मिलियन टन गेहूं का आयात किया था। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष टी.हक का कहना है कि 2008-2009 में भारत को गेहूं के आयात की आवश्यकता नहीं होगी। वहीं एक अन्य अनुमान के अनुसार भारत को अपने भंडार में वृध्दि के लिए 3 मिलियन टन गेहूं का आयात करना पड़ सकता है।
चावल - मार्च 2008 में चावल का मूल्य प्रति टन 500 डालर की सीमा को पार कर गया जो कि पिछले 20 वर्षों में अधिकतम है। जानकारों के अनुसार चावल की कीमत में दो गुनी से ज्यादा वृध्दि हुई है। इसकी एक वजह यह है कि 2007-2008 में चावल के उत्पादन में मात्र 0.6 प्रतिशत की वृध्दि हुई है। फिलीपीन्स व अफ्रीकी देशों में बढ़ती मांग से यह भी मूल्यवृध्दि हुई है। साथ ही पाकिस्तान में बिजली की कमी से चावल मिलों का बंद होना और चीन एवं भारत द्वारा चावल निर्यात पर रोक लगाना भी इस मूल्य वृध्दि के अन्य कारण हैं। भारत ने जहां मेडागास्कर, मारीशस व समुद्री तूफान से ग्रस्त बांग्लादेश के लिए आंशिक छूट दी है वहीं चीन ने तो इसके निर्यात पर पूण्र् ा प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसी दौरान वियतनाम से फिलीपीन्स को टूटा हुआ चावल 750 डालर प्रति टन के भाव से बेचा। निर्यातकर्ताओं ने भी कीमतों में वृध्दि की संभावना के मद्देनजर चावल का भंडारण कर लिया है। वहीं पाकिस्तान में कुछ ही महीनों में चावल की कीमतों में 60 प्रतिशत की वृध्दि हुई है।
मक्का - दिसम्बर 2005 से दिसम्बर 2007 के मध्य मक्का की कीमतें 103 डालर प्रतिटन से बढ़कर 180 डालर प्रतिटन तक पहुंच गईं। 2007-2008 में मोटे अनाजों के उत्पादन में 9 प्रतिशत की रिकार्ड वृध्दि हुई जिसमें मक्का का सर्वाधिक योगदान है। इसके बावजूद इसकी कीमतें पिछले 10 वर्षों के अधिकतम स्तर 230 डालर प्रतिटन पर पहुंच गईं। इसकी वजह है मक्का का बायोईंधन और चारे के लिए किया जाने वाला उपयोग। मक्का के निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से भी अधिक है। परन्तु इस दौरान उसने इसकी एक चौथाई खपत बायो ईंधन के उत्पादन में कर ली। इस कार्य में उसने 2006-2007 में 54 मिलियन टन मक्का का इस्तेमाल कियाय जिसके 2007-2008 में बढ़कर 81.3 मिलियन टन हो जाने का अनुमान है।
तिलहन - पिछले डेढ़ वर्षों में सोयाबीन तेल और पाम आईल के भावों में जबरदस्त तेजी आई है। खाद्य पदार्थों में सर्वाधिक मूल्य वृध्दि इसी वर्ग में हुई है एवं इसके जारी रहने की संभावना भी है। पिछले एक वर्ष में पाम आईल की कीमतें 350 डालर से बढ़कर 1250 डालर पर पहुंच गईं। यानि की इनमें करीब 3.5 गुना वृध्दि दर्ज की गई है। वहीं सोयाबीन तेल की कीमतें बढ़कर 499.43 डालर पर पहुंच गईं हैं। साथ ही सोयाबीन और सूरजमुखी के उत्पादन में कमी भी इसके लिए जिम्मेदार है। वहीं पाम, पाम गिरी, गिरी (कोपरा), रेपसीड व मूंगफली के तेल उत्पादन में वृध्दि का अनुमान है। वैसे खाद्य तेलों की कीमतों में वृध्दि इनका बायोईंधन में हो रहे इस्तेमाल का परिणाम है। चीन और भारत में बढ़ती मांग भी मूल्यवृध्दि का एक कारण है। पाम आईल के सबसे बड़े उत्पादक मलेशिया में आई बाढ़ भी इसके लिए जिम्मेदार है। वहीं यूरोप में पाम आईल को अधिक स्वास्थ्यवर्धक मानने से भी इसकी मांग में वृध्दि हुई है। स्थिति की गम्भीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन के एक स्टोर में प्रोत्साहन मूल्य यपर तेल बेचे जाने के दौरान हुई भगदड़ में तीन व्यक्तियों की मृत्यु हो गई और 31 घायल हो गए। मलेशिया में तो पारम्परिक वन क्षेत्रों को साफ करने वहां पाम का रोपण किया जा रहा है जिससे कि यूरोप की बायोईधन की मांग को पूरा किया जा सके।डेरी एवं पोल्ट्री - प्रति व्यक्ति आय बढ़पे से डेरी उत्पाद की मांग में वैश्विक वृध्दि हुई है। चीन और भारत इसमें सबसे आगे हैं। जानवरों द्वारा अनाज की चारे के रूप में बढ़ती खपत से भी खाद्यान्नों की आपूर्ति को उस ओर मोड़ना पड़ रहा है। एफ.ए.ओ. के अनुसार 20 वर्ष पूर्व के मुकाबले आज 200-250 मिलियन टन अनाज की चारे के रूप में मांग बढ़ चुकी है। साथ ही इसने यह भी भविष्यवाणी की है कि विकासशील देशों में गाय, भेड़ और बकरी के मांस की मांग में वृध्दि होगी। वहीं विकसित देशों में मांस के उत्पादन में कमी की आशंका है। एशिया खासकर भारत और चीन में दूध के उत्पादन में अधिकतक बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं 2007 में जहां दूध की कीमतों में 12 प्रतिशत की वृध्दि हुई है वहीं 2008 में इसके उत्पादन में मात्र 2.7 प्रतिशत की वृध्दि की संभावना है। दूसरी ओर मात्र यूराप में सन 2014 तक 8 मिलियन टन अतिरिक्त दूध की आपूर्ति संभावित है। मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर बढ़ता ही जा रहा है। इसके लिए सिर्फ जनसंख्या वृध्दि को ही उत्तरदायी यनहीं ठहराया जा सकता। वृध्दि के लिए आंचलिक परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं। समाधान खोजने वाले भी दो समूहों जिनमें से एक जैव संवर्धित (जी.एम.) खाद्यान्नों का समर्थक है ओर दूसरा इसके विरोधियों का है, के बीच बंट गए हैं। खनिज तेलों की कीमतों में वृध्दि भी खाद्यान्नों की मूल्य वृध्दि का प्रमुख कारण हैं। सन् 1973 में जब इन तेलों की कीमतों में वृध्दि हुई थी तब भी ऐसे ही परिणाम निकले थे। अमेरिका के कुल मकई/ज्वार उत्पादन का 25 प्रतिशत व मक्का का 20 प्रतिशत सिर्फ बायोईंधन के उत्पादन में लग रहा है। अमेरिका अगले 15 वर्षों में इस उत्पादन में दुगने से अधिक की वृध्दि चाह रहा है। इसके परिणाम स्व्रूप खाद्य पदार्थों के मूल्यों में वृध्दि तो होगी ही। विश्वबैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार एक मध्य आकार के वाहन में एक बार में जितना इथनाल भरा जाता है वह एक व्यक्ति के साल भर के भोजन के लिए पर्याप्त होता है। यूरोप के पर्यावरण आयुक्त स्टाव्रोज डिमास ने स्वीकार किया है कि यूरोपीयन यूनियन द्वारा सन् 2020 तक ग्रीन ईंधन की 10 प्रतिशत की अनिवार्यता खाद्य पदार्थों की कमी एवं वर्षा वनों की समाप्ति से उत्पन्न होने वाले खतरों को कमतर आंकना ही है। भारत भी इस ओर तेजी से कदम बढ़ाने की फिराक में हैं गत् अक्टूबर में भारत सरकार ने तय किया है कि अगले वर्ष से पेट्रोल में 10 प्रतिशत इथनाल अनिवार्य रूप से मिलाया जाए। यह वर्तमान से दुगना होगा। इसके लिए भारत को गन्ने का 16 प्रतिशत अतिरिक्त उत्पादन करना होगा। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रवीण झा का कहना है कि हमें बायोईंधन उत्पादन की लागत को समझना चाहिए। बायोईंधन संयंत्र के लिए न केवल हम खनिज ईंधन का अतिरिक्त प्रयोग करेंगे बल्कि जंगलों और मैदानी इलाकों की सफाई कर बायोईंधन फसल उगाएंगें। दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को भी महसूस किया जाने लगा है। हाल ही प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार मध्यपूर्व व उत्तरी अफ्रीका में बढ़ते तापमान से कृषि को नुकसान पहुंचने लगा है। साथ ही मांस व अन्य डेयरी उत्पादों की मांग में असाधारण वृध्दि ने भी खाद्यान्नों की कीमतों में बढ़ोत्तरी की है। एफ.ए.ओ. का अनुमान है कि अमेरिका, ब्राजील और मेक्सिको में मोटे अनाज के उत्पादन में रिकार्ड वृध्दि बायोईंधन एवं चारे की जरूरत की वजह से की गई है। युगांडा, अंगोला और मोजाम्बिक जैसे उच्च आर्थिक विकास वाले अफ्रीकी देश भी अब अपने भोजन में चावल को प्राथमिकता देने लगे हैं क्योंकि इसको पकाना आसान है एवं घरेलू उत्पादन के बजाए इसका आयात भी आसान है। क्या भारत बढ़ती वैश्विक खाद्य मूल्यों से स्वयं को सुरक्षित रख पाएगा? इसका कोई निश्चित या सर्वमान्य उत्तर दे पाना संभव नहीं है। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस वृध्दि पर आगामी तीन महीनों में रोक लग सकती है वहीं कुछ मानते हैं कि यह प्रवृत्ति लंबे समय तक बनी रह सकती है। कृष्ज्ञि मंत्रालय का अनुमान है कि रबी के मौसम में 76 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन होगा वहीं दिल्ली स्थित इंस्ट्टियूट आफ इकोनामिकल ग्रोथ का मानना है कि देश में अधिकतम 73 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन हो सकता है। कृषि लागत व मूल्य आयोग ने चेतावनी दी है कि 2008-2009 में आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में व्यापक बढ़ोत्तरी होगी। साथ ही उसने इनकी आपूर्ति के प्रति भी शंका जाहिर की है। प्रसिध्द कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामिनाथन का कहना है कि मांग और आपूर्ति के अलावा कई अन्य घटक जैसे खनिज तेल के मूल्यों में वृध्दि आदि भी खाद्यान्न मूल्य वृध्दि में सहायक हैं। कृषि में वैसे भी उर्जा का काफी उपयोग होता है। साथ ही खनिज तेल की कीमतें 110 डालर प्रति बैरल पहुंचने से कृषि में प्रयुक्त होने वाले उत्पाद जैसे रासायनिक खाद व कीटनाशक भी महंगे हो जाएंगे।भारतीय उपभोक्ता द्वारा बढ़ती कीमतों से अधिक चुभन महसूस न किए जाने के पीछ यह कारण है कि यहां पर कीमतों को सब्सिडी के द्वारा नियंत्रण में रखा जाता है। इस क्रम में खाद्यान्न सब्सिडी जो कि 2006-2007 में 24 हजार करोड़ रुपए थी वह वर्तमान में बढ़कर 31 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। ऐसा ही खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी पर भी हुआ है। सब्सिडी के अलावा इसका एक अन्य कारण यह भी है कि हम धान और गेहूं दोनों ही उपजाते हैं इससे कीमतों को काबू में रखने में मदद मिलती है। हम हमारी घरेलू आवश्यकता का 90 से 95 प्रतिशत तक स्वयं ही पैदा करते हैं इसलिए हमारा आयात भी कम है जिसे हम अधिक दरों पर भी खरीद सकते हैं। इंस्ट्टियूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, दिल्ली के सी.एस.सी. शेखर का कहना है कि निजी क्रेताओं द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक पर खाद्यान्न खरीद लेने के परिणामस्वरूप सरकार के पास इनके आयात के अतिरिक्त अन्य कोई चारा नहीं बचता है। आवश्यकता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और खरीदी मूल्य को अलग अलग किया जाए। सरकार को किसानों से बाजार मूल्य यपर खाद्यान्न खरीदना चाहिए। वहीं एम.एस. स्वामीनाथन का कहना है कि कीटनाशक, खाद, बिजली इत्यादि जैसे विभिन्न कारकों के मूल्यांकन के पश्चात 15 प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य निकाला जाता है जबकि यह कम से कम 50 प्रतिशत होना चाहिए। किसानों के राष्ट्रीय आयोग ने भी आयात कम करने के लिए किसानों को आकर्षक प्रस्ताव देने को कहा है। कीमतों को काबू में रखने के लिए भारत सरकार को बहुत शीघ्रता से खाद्यान्नों की खरीद करना होगी। यह भी कहा जा रहा है कि यदि भारत ने अंतरराष्ट्रीय बाजार से 10 से 20 लाख टन खाद्यान्न खरीद लिया तो कीमतों में और भी उछाल आएगा। ठंड में तिलहनों के उत्पादन में कमी ने चिंता और बढ़ा दी है क्योंकि खाद्य तेल के भाव बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। वित्तमंत्री ने राज्यसभा को यह आश्वासन दिया है कि वे अपने नई मुद्रास्फीति को रोकने का पूरा प्रयत्न करेगें जिससे कि गरीबों पर इसकी मार न पड़े। इस क्रम में खाद्य तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। साथ ही गेहूं और चावल के निर्यात पर काफी हद तक रोक लगा दी है। इसी के साथ खाद्य तेलों के आयात शुल्क में भी व्यापक कमी की गई है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि निर्यात पर प्रतिबंध एक अल्पकालिक उपाय है एवं किसान विरोधी भी है। कृषि विशेषज्ञ स्वामीनाथन का कहना है कि पूर्वी भारत में अभी भी काफी संभावनाएं हैं। किसानों के लिए सही तकनीक, एक से अधिक फसल लेने का प्रशिक्षण एवं सरकारी योजनाओं का लाभ लेना आवश्यक है। (सप्रेस/सीएसई)

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