खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com
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Friday, March 27, 2009

भूख के मामले में विश्व में भारत का प्रथम स्थान

ग्रामीण गरीबी दूर करने में भारत पिछड़ रहा है। यहां 23 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं जो विश्व भर में सबसे ज्यादा है। भारत में बच्चों की कुल मौतों में से 50 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के कारण मरते हैं। जबकि प्रत्येक तीसरे व्यस्क व्यक्ति का वजन कम होता है।
यह बात ग्रामीण भारत के खाद्य सुरक्षा की हालत के बारे में एक अध्ययन रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यद्यपि मुद्रास्फीति जुलाई, 2008 में 12 प्रतिशत थी, जो 13 साल में सबसे ज्यादा थी, जनवरी, 2009 में घटकर 5 प्र्रतिशत रह गई, लेकिन इस अवधि में खाद्यान्नों की मुद्रास्फीति 5 प्रतिशत से बढ़कर 11 प्रतिशत हो गई जो दो गुना से भी अधिक है। वर्ष 2008-2009 में खाद्यान्नों की पैदावार रिकार्ड 228 मिलियन टन होने की उम्मीद है लेकिन 2015 तक देश की आबादी की जरूरत 250 मिलियन टन से ज्यादा होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 119 देशों के ग्लोबल हंगर इन्डेक्स में भारत का स्थान 94वां है। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्लूएफपी) द्वारा जारी इस रिपोर्ट में कुछ चौकाने वाली बातें बातें कही गई हैं। इसमें कहा गया है कि विश्व की कुपोषण जनसंख्या का 27 प्रतिशत से अधिक भारत में है, देश के 43 प्रतिशत बच्चे (5 साल से कम उम्र के बच्चे) कम वजन के हैं। यह आंकड़ा विश्व में सबसे ज्यादा है। तथा वैश्विक औसत 25 प्रतिशत से भी काफी अधिक है। कम वजन वाले बच्चों का भारत का प्रतिशत सब-सहारा, अफ्रीका से भी अधिक है।
रिपोर्ट के अनुसार 70 प्रतिशत से अधिक बच्चों में खून की कमी रहती है और 80 प्रतिशत बच्चों को विटामिन पूरक उपलब्ध नहीं है। इसमें कहा गया है कि पिछले छह सालों मे खून की कमी वाले बच्चों की संख्या में 6 प्रतिशत की वृध्दि हुई। 19 में से 11 राज्यों में 80 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है।
शारीरिक रूप से कमजोर महिलाओं का प्रतिशत पिछले छह सालों में 40 प्रतिशत बना हुआ है तथा ऐसी महिलाओं की सख्या असम, बिहार, मध्य पद्रेश और हरियाणा में बढ़ रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में महत्वाकांक्षी लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली विफल होती जा रही है। खाद्यान्न सब्सिडी कम करने का लक्ष्य प्राप्त करने के अलावा इससे बड़े पैमाने पर गरीब वर्गो के लिए खाद्य असुरक्षा की स्थिति भी पैदा हुई।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ एक अन्य समस्या है किसी एक परिवार को कितना खाद्यान्न मिलना चाहिए। शुरू में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवार के लिए प्रतिमाह 10 किलो अनाज आवंटित किया गया। पांच सदस्यों वाले परिवार के लिए यह प्रति व्यक्ति 2 किलो होता है। जबकि आईसीएमआर की सिफारिश के अनुसार यह प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह 11 किलो यानी 5 सदस्यों वाले परिवार के लिए 55 किलो होना चाहिए। 2001 के केन्द्रीय बजट में इसे बढ़ाकर प्रतिमाह 20 किलो तथा अप्रैल 2002 में इसे और बढ़ाकर 35 किलो किया गया।
रिपोर्ट में भूख और गरीबी की सरकार की परिभाषा पर भी सवाल उठाया गया है। प्रो. एमएस स्वामीनाथन का कहना है कि पोषाहार सुरक्षा का मतलब है प्रत्येक बच्चे, महिला और पुरूष को संतुलित भोजन, स्वच्छ पेयजल, सफाई तथा प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध होना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के घरों में शौचालय नहीं है। छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में यह संख्या 90 प्रतिशत से अधिक है।
भारत में 5 साल से कम उम्र के 48 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के कारण शारीरिक एवं मानसिक रूप में कम विकसित होते हैं। यह विश्व में सबसे ज्यादा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश का हर दूसरा बच्चा शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता है।
रौन्तेय सिन्हा

यह आलेख मुक्ति संघर्ष साप्ताहिक के 22-28 मार्च, 2009 के अंक में प्रकाशित हुआ है। अखबार से साभार इसे हम यहां प्रसारित कर रहे हैं। उम्मीद है आपके लिए उपयोगी जानकारी वाला होगा। धन्यवाद।खेत खलियान की ओर से शिवनारायण गौर

Thursday, December 13, 2007

मध्यप्रदेश में क्यों हो रही हैं भूख से मौतें

जबलपुर: हाईकोर्ट ने गुरुवार को सरकार से पूछा है कि प्रदेश में भूख और कुपोषण से मौतें क्यों हो रही हैं? चीफ जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस अजीत सिंह की युगलपीठ ने एक जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 14 जनवरी को निर्धारित की है।
भोपाल के स्वयंसेवी संगठन ‘राइट टू फूड’ के कन्वीनर सचिन जैन की ओर से दायर इस जनहित याचिका में कहा गया है कि मध्यप्रदेश में पिछले दो से तीन साल में कुपोषण और भूख से मौत होने के मामले में अचानक वृद्धि हुई है।
याचिका के अनुसार नागरिकों को भोजन के अधिकार के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का सरकार ने पालन नहीं किया, जिससे प्रदेश के कई खासकर ग्रामीण इलाकों में भूख और कुपोषण से लगातार मौतें हो रही हैं। याचिका के अनुसार राज्य सरकार भूखे लोगों को भोजन देने में नाकाम रही है। इस बारे में सरकार कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा रही है। याचिका के अनुसार केन्द्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाएं इस बारे में बनी तो हैं, लेकिन राज्य सरकार योजना के लिए निर्धारित फंड में लगातार कटौती कर रही है।
इस संबंध में अनेक बार संबंधित अधिकारी और राज्य सरकार से शिकायत की गई, लेकिन मामले पर कोई कार्रवाई न होने पर यह याचिका दायर की गई। याचिका में राहत चाही गई है कि भूख से मौत होने के किसी भी मामले में पीड़ित परिवार को तत्काल दो लाख रुपए की राशि मुहैया कराने, ग्रामीण इलाकों में आंगनबाड़ी केन्द्र और सरकारी योजनाओं की निगरानी के लिए जिला स्तर पर नियुक्तियां कराने के निर्देश सरकार को दिए जाएं।
मामले पर आज हुई सुनवाई के दौरान आवेदक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एनएस काले और अधिवक्ता राघवेन्द्र कुमार ने अपनी दलीलें कोर्ट के समक्ष रखीं। सुनवाई के बाद अदालत ने अनावेदकों को नोटिस जारी करने के निर्देश दिए हैं।
68 हजार परिवारों को भोजन नहीं!याचिका में बीपीएल जनगणना 2002 की रिपोर्ट का हवाला देकर आरोप लगाया गया है कि प्रदेश में गरीब परिवारों की स्थिति काफी दयनीय है। प्रदेश के 28 जिलों में 56 लाख से अधिक परिवार बीपीएल की सूची में आते हैं। इनमें से करीब 68 हजार परिवारों को पेट भरने और जीने के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता। करीब सवा लाख परिवार ऐसे हैं, जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिलती और डेढ़ लाख से अधिक परिवारों को रोजाना एक ही समय का भोजन मिलता है।
सरकार कर रही है कटौतीयाचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य में वृद्धावस्था पेंशन योजना, जननी सुरक्षा योजना, परिवार सहायता, अंत्योदय अन्न योजना, बीपीएल परिवारों के राशन कार्ड की योजना और आंगनबाड़ियों का संचालन सुचारु ढंग से नहीं हो पा रहा है। याचिका में आरोप है कि राज्य सरकार इन योजनाओं के लिए निर्धारित फंड में लगातार कटौती कर रही है, जो सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का खुला उल्लंघन है।