इस साल सरकार के लिए गेहूं बहुत पेचीदा मुद्दा रहा० चाहे वह बफर स्टाक के लिए खरीदी का मसला हो या फिर अधिक कीमत पर बाहर से ऑयात करने का. इन दोनों ही मुद्दों पर लोगों ने जमकर खिंचाइ की. शायद इन सब दबाबों का ही और उससे भी ज्यादा परमाणु करार के कारण सरकार के गिरने और मध्यावधि चुनाव कि आशंका को ध्यान मे रखते हुये सरकार ने गेहूं के समर्थन मूल्य में वृधी करके १००० रूपये कर दिया है० गौरतलब है कि पिछले दो साल से सरकार गेहूं खरीदी के लक्ष्य को हासिल करने में बुरी तरह नाकाम रही है० इस साल तो तमाम तरह कि धमकियों के बावजूद भी किसानों ने अपना गेहूं सरकार के बजाय निजी कम्पनियों कों बेचना ज्यादा वाजिब समझा० और क्यों ना हो इन निजी कम्पनियों ने समर्थन मूल्य से भी ज्यादा दामों में खरीदी की० वह भी तत्काल नकद भुकतान के साथ० इन हालातों के मद्देनजर यदी देखा जाये तो समर्थन मुल्य मे कि गयी वृधी स्वागत योग्य है० पर असल में कई और सवाल हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए अन्यथा दामों मे कि गयी इस वृधी का कोई सार्थक परिणाम मिले० जैसे पिछले कुछ सालों से सर्कार खेती-किसानी से जुडे तमाम क़ानूनों को लचीला करते जा रही है० हाल ही में कये गए ए० पी० एम० सी० कानून में किये बदलावों का ही परिणाम हमें गेहूं की ख़रीदे वाले मसले पर दिखाई देता है० अब मंडी के बाहर देशी-विदेशी बड़ी बड़ी कंपनियाँ खरीदी कर रही है० उनके लिए खरीदी का लाइसेंस लेना काफी आसान हो गया है० मध्य प्रदेश में तो महज दस हजार रुपयों में प्राप्त किये जा सकता है० ये कंपनियाँ अभी तो थोड़ी बहुत सुविधाओं के दम पर किसानो को रिझा पाने में भी सफल हो रही है० कई निजी व्यापारियों ने गत वर्ष इन कम्पनियों का खुलकर विरोध भी किया पर नतीजा सिफर ही रहा० भविष्य के बारे में सोचे जाने कि महती जरुरत इन दिनों महसूस कि जा रही है० यानी क्या आगामी समय मे मंडी का ढांचा खत्म ही हो जायेगा?
शिवनारायण गौर
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