मध्यप्रदेश के कृषि क्षेत्र में वर्ष 1998-99 से 2004-05 तक के सात वर्षों की अवधि में निरंतर 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 1998-99 में राज्य की आय (जी.डी.पी.) में कृषि का योगदान 38.85 प्रतिषत था जो लगातार गिरते हुए 2004-05 में 28.55 प्रतिषत पर आ गया। इसका अर्थ यह हुआ कि किसानों की आमदनी पिछले सात वर्षों में 10 प्रतिषत तक कम हो गई है। किसानों की कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय जो 1998-99 में 4575 रूपए थी, वह आज 2004-05 में घटकर 4120 रूपए रह गई। इसकी तुलना में प्रदेष की प्रति व्यक्ति औसत आय जो 1998-99 में 6584 रूपए थी, वह 2004-05 में बढ़कर 8238 रूपए हो गई है।
प्रदेष के कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय में गिरावट से सबसे ज्यादा प्रभावित वे सीमांत (1 हैक्टेयर से कम) एवं लघु (1 हैक्टेयर से 2 हैक्टेयर तक) कृषक हुए हैं, जो कुल कृषकों के 60 प्रतिषत या 6 लाख के लगभग होते हैं। शेष 40 प्रतिषत कृषक अपने पारिवारिक जीवन निर्वाह के अनुकूल फसल प्राप्त कर लेते हैं। प्रदेष के 203 लाख हैक्टेयर कृषि क्षेत्र का 70 प्रतिषत (142 लाख हैक्टेयर) की खरीफ फसलें मानसून पर निर्भर हैं।
आज प्रदेष के 203 लाख हैक्टेयर के सकल कृषि क्षेत्र का 91.30 प्रतिषत (185.30 लाख हैक्टेयर) भाग खाद्यान, दलहन एवं तिलहन उत्पाद करने के निमित्त उपयोग में आ रहा है। शेष 8.70 प्रतिषत क्षेत्र (17.70 लाख हैक्टेयर) वाणिज्यिक फसलों (गन्ना, कपास) तथा उद्यानिकी फसलों (फल, सब्जी, मसाले आदि के अंतर्गत है)
प्रदेष में खरीफ मौसम में ली जाने वाली फसलों में मुख्यत: सोयाबीन है, जिसका क्षेत्रफल 46 लाख हैक्टेयर है, जो कुल कृषि क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिषत है। यह पूर्णत: मानसून पर ही निर्भर है। प्रदेष के लगभग 10 लाख कृषक सोयाबीन की फसल लेते हैं। इनमें 35 प्रतिषत सीमांत एवं 25 प्रतिषत लघु कृषकों की श्रेणी में आते है। जो कुल सोयाबीन उगाने वाले कृषकों का 60 प्रतिषत या 6 लाख होते हैं। ये 60 प्रतिषत किसान चौपाल व्यवस्था से दूर हैं।
आज भी 85 प्रतिशत छोटे, सीमांत या खेत मजदूरों के पास जमीन का मात्र छोटा सा हिस्सा ही है। जबकि तीन-चौथाई जमीन पर 15 प्रतिषत बड़े किसान के हाथ में है। 1999-2000 के एन.एस.एस.ओ. के आंकड़ें बताते हैं कि मध्य प्रदेश में 17.5 प्रतिषत 0.01 से 0.4 हैक्टेयर के किसान हैं, 27.7 प्रतिशत 0.4 से 1.0 हैक्टेयर के है, 26.6 प्रतिशत 1.0 से 2.0 हैक्टेयर के है, 17.9 प्रतिषत 2.0 से 4.0 हैक्टेयर के है और 9.1 प्रतिषत 4 हैक्टेयर से अधिक के किसान हैं।
प्रदेष के कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय में गिरावट से सबसे ज्यादा प्रभावित वे सीमांत (1 हैक्टेयर से कम) एवं लघु (1 हैक्टेयर से 2 हैक्टेयर तक) कृषक हुए हैं, जो कुल कृषकों के 60 प्रतिषत या 6 लाख के लगभग होते हैं। शेष 40 प्रतिषत कृषक अपने पारिवारिक जीवन निर्वाह के अनुकूल फसल प्राप्त कर लेते हैं। प्रदेष के 203 लाख हैक्टेयर कृषि क्षेत्र का 70 प्रतिषत (142 लाख हैक्टेयर) की खरीफ फसलें मानसून पर निर्भर हैं।
आज प्रदेष के 203 लाख हैक्टेयर के सकल कृषि क्षेत्र का 91.30 प्रतिषत (185.30 लाख हैक्टेयर) भाग खाद्यान, दलहन एवं तिलहन उत्पाद करने के निमित्त उपयोग में आ रहा है। शेष 8.70 प्रतिषत क्षेत्र (17.70 लाख हैक्टेयर) वाणिज्यिक फसलों (गन्ना, कपास) तथा उद्यानिकी फसलों (फल, सब्जी, मसाले आदि के अंतर्गत है)
प्रदेष में खरीफ मौसम में ली जाने वाली फसलों में मुख्यत: सोयाबीन है, जिसका क्षेत्रफल 46 लाख हैक्टेयर है, जो कुल कृषि क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिषत है। यह पूर्णत: मानसून पर ही निर्भर है। प्रदेष के लगभग 10 लाख कृषक सोयाबीन की फसल लेते हैं। इनमें 35 प्रतिषत सीमांत एवं 25 प्रतिषत लघु कृषकों की श्रेणी में आते है। जो कुल सोयाबीन उगाने वाले कृषकों का 60 प्रतिषत या 6 लाख होते हैं। ये 60 प्रतिषत किसान चौपाल व्यवस्था से दूर हैं।
आज भी 85 प्रतिशत छोटे, सीमांत या खेत मजदूरों के पास जमीन का मात्र छोटा सा हिस्सा ही है। जबकि तीन-चौथाई जमीन पर 15 प्रतिषत बड़े किसान के हाथ में है। 1999-2000 के एन.एस.एस.ओ. के आंकड़ें बताते हैं कि मध्य प्रदेश में 17.5 प्रतिषत 0.01 से 0.4 हैक्टेयर के किसान हैं, 27.7 प्रतिशत 0.4 से 1.0 हैक्टेयर के है, 26.6 प्रतिशत 1.0 से 2.0 हैक्टेयर के है, 17.9 प्रतिषत 2.0 से 4.0 हैक्टेयर के है और 9.1 प्रतिषत 4 हैक्टेयर से अधिक के किसान हैं।
(कृषि विभाग की जानकारी के विश्लेषण पर आधारित )
शिवनारायण गौर
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