समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध। नंदीग्राम को फतह कर लिया गया है। 11 नवंबर को बंगाल और भारतीय वामपंथी राजनीति के इतिहास में एक और रक्त दिवस के रूप में याद किया जाएगा। लाल रंग सीपीएम का रंग है और बांग्ला में लाल को रोक्तो ही कहा जाता है. सीपीएम के राज्य नेता और मंत्री श्यामलाल चक्रवर्ती ने कहा है कि अब वहां शांति स्थापित हो चुकी है और लोग वहां की ताजा हवा में सांस ले सकते हैं. खून की गंध से भरी नंदीग्राम की हवा बहुत दिनों तक उनका पता पूछती रहेगी जो सीपीएम के इस क्रांतिकारी कब्जा अभियान में मारे गए. यहां बताना नामुमकिन है कि कितने कत्ल हुए और कितनी औरतों के साथ बलात्कार हुआ. नंदीग्राम पर सीपीएम की घेराबंदी इतनी जबर्दस्त थी कि सीआरपीएफ को भी 11 नवंबर को लौट जाना पड़ा. पुलिस नंदीग्राम पहुंच नहीं पा रही है या उसे मना कर दिया गया है. आखिर इतने सालों से राज्य पुलिस सीपीएम की अनुचरी बनी रही है और यह भूल चुकी है कि उसका स्वतंत्र कर्तव्य क्या है. पत्रकारों का नंदीग्राम के भीतर जाना कठिन था और उनकी गाड़ियों पर सीपीएम के लोगों ने हमला किया और उन्हें लौटने पर मजबूर कर दिया. नंदीग्राम में सीपीएम के हमलों में घायल ग्रामवासियों में से अनेक का अपहरण कर लिया गया है. कई लापता हैं. उनका पता कैसे चले यह एक बड़ी समस्या है. ज्योति बसु पहले से कहते चले आ रहे हैं कि नंदीग्राम में अब शांति आने ही वाली है और अब शांति से उनका तात्पर्य बिल्कुल स्पष्ट हो चुका है. लेकिन सीपीएम के इस खूनी कब्जे के बाद नंदीग्राम से भगा दिए गए प्रतिरोधी गांववालों के पुनर्वास का प्रश्न उठ खड़ा हुआ है. सीपीएम के लोग यह कह रहे हैं कि किसी पर कोई जुल्म नहीं होगा. सभी साथ-साथ रह सकते हैं और अपने राजनीतिक विचारों का पालन कर सकते हैं. लेकिन बंगाल को जानने वाला कोई भी अच्छी तरह यह जानता है कि यह दूसरी किसी जगह भले संभव हो, बंगाल में तो असंभव है. अगर बंगाल की राजनीतिक संस्कृति ऐसी होती तो नंदीग्राम की यह परिणति नहीं होती. सीपीएम जनता का पूरा समर्पण चाहती रही है. हमें ऐसे किस्से मालूम हैं कि शादी ब्याह जैसे नितांत निजी प्रसंगों में भी पार्टी की रजामंदी के बिना कोई कदम उठाना खतरनाक हो सकता है. विरोधी दल वालों के गांवों में रिश्ते नहीं किए जा सकते और ऐसा न होने देने के लिए सड़कें काट दी जाती हैं और गड्ढे खोद दिए जाते हैं. जमीन खरीद-बिक्री आदि में तो पार्टी का फैसला निहायत जरूरी है. बंगाल में लोकतांत्रिक स्वभाव का खात्मा हो चुका है इसलिए राजनीतिक विरोधियों की सह पाने की क्षमता भी जाती रही है. इस व्याधि के शिकार सीपीएम के अलावा और दल भी हैं. (अपुर्वानंद)
समकालीन जनमत
No comments:
Post a Comment