खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Tuesday, December 4, 2007

खेती का कम्पनीकरण

सुरेश दीवान
भूमण्डलीकरण का एक रूप उत्पादन के भूमण्डलीकरण का है अस्सी व नब्बे के दशक में उत्पादन प्रक्रिया का तीब्र गति से भूमण्डलीयकरण हुआ। विश्व बैक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने विकासशील देशों पर इस दवाब के चहरे को ढांचागत समायोजन का नाम दिया। उदारीकरण की नीति के कारण कृषि क्षेत्र मे सरकारी निवेश घटकर 3-4 प्रतिशत रह गया है। दूसरी ओर निजी पूंजी निवेश का ग्राफ बढ़ रहा है। जिसके चलते भारतीय कृषि संकट की स्थिति में है। भूमण्डलीकरण की नीति ने कोढ़ में खाज का काम किया। उदारीकरण के रास्ते बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय कृषि पर अनेक तरह से हमला कर रही हैं। भारत में 80 प्रतिशत आबादी खेती से आजीविका प्राप्त करती है खेती न केवल आजीविका का स्रोत है लोगो की संस्कृति से भी जुड़ी हुई है। देश के 85 प्रतिशत किसान छोटे व मध्यम वर्गीय है। इनमें से दो तिहाई कृषक सूखी खेती पर निर्भर है। करीब 25 करोड़ लोग जो गरीबी रेखा के अंर्तगत हैं वे ग्रामीण क्षेत्र में निवास करते हैं।
होशंगाबाद जिले में हरित क्रांति के नाम पर 1974 से तवा परियोजना से सिंचाई शुरू हुई, लगभग उसी समय से ही फसल चक्र में बदलाव आया। जिले की उपजाऊ जमीन, आवश्यक आधारभूत संरचना, यातायात की सुगमता, इन्दौर और भोपाल से नजदीकी आदि अनेक कारणों से बहुराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय कृषि व्यवसायिक प्रतिष्ठानों की घुसपैठ की शुरूआत इस जिले में हो चुकी है। यह जिला इन कंपनियों के प्रयोगों का प्रवेशद्वार बन चुका है। यहाँ तक की जिले का दक्षिणी इलाका जो आदिवासी बहुल है वहाँ भी मोनसेन्टो जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनी प्रवेश कर चुकी है। होशंगाबाद से इटारसी अथवा होशंगाबाद से पिपरिया मार्ग पर आपको इन प्रतिष्ठानों के बड़े-बड़े ढाँचे देखने को मिलेंगे। यह एक विरोधाभास है कि इस जिले के लघु, सीमान्त कृषक प्रति वर्ष जमीन से बेदखल हो रहे है। ग्रामीण महिलाओं की बेरोजगारी में वृध्दि हो रही है। बच्चों व गर्भवती माताओं में खून की कमी और पोषण संबंधी कमी के लिए आई.सी.डी.एस. जैसे कार्यक्रम ऑंगनबाड़ी के तहत् चलाए जा रहे हैं। दूसरी तरफ यह कहा जा रहा है कि यह जिला पंजाब और हरियाणा के मुकाबले में हो गया है। यह सच है कि जिले के 5 प्रतिशत बड़े किसान हरितक्रान्ति के दौरान संपन्न हुए हैं लेकिन 95 प्रतिशत किसान अभी भी विपन्न हैं। उदारीकरण और मुक्त व्यापार के इस दौर में खेती में निजी पूँजी निवेश को बढ़ावा देने की शासकीय नीति रही है। इसी के चलते होशंगाबाद जिले का परिदृश्य बदलता नजर आ रहा है। निजी क्षेत्र के कृषि में प्रवेश से यहाँ के लघु, सीमान्त किसान विशेषकर महिला, आदिवासी और पिछड़े वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसकी पड़ताल जरूरी है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की एक समानान्तर सरकार है लोकतंत्र की दुहाई देने वाली कंपनियों की रीति नीति में पारदर्शिता का अभाव है।

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