खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Monday, October 29, 2007

किसान, मजदूर और वैज्ञानिक

करीब 65 साल के दादाजी रामजी खोबरागाड़े छोटे किसान हैं। उनके पास सिर्र्फ डेढ़ एकड़ जमीन है। छह लोगों के परिवार का पालन-पोषण इतनी कम जमीन से होना मुष्किल होता है। इसलिए वे मजदूरी भी करते हैं। लेकिन वे किसान, मजदूर ही नहीं एक वैज्ञानिक भी हैं। गत वर्ष उन्हें भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संचालित राष्ट्रीय नवाचारी प्र्र्रतिष्ठान का द्वितीय पुरस्कार मिला। यह संस्था देषभर में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करने के लिए नवाचारी लोगों को हर साल पुरस्कृत करती है। दादाजी को यह पुरस्कार उनके द्वारा की गई धान की एक किस्म की खोज के लिए दिया गया। एचएमटी नामक यह धान महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके के लगभग 35 प्रतिषत क्षेत्र में बोई जाती है। यही नहीं महाराष्ट्र की सीमा से लगे राज्यों में भी यह किस्म अच्छी-खासी प्रचलित है।
दादाजी रामजी महाराष्ट्र के चंद्र्रपुर जिले के नांदेड़ गांँव में एक बहुत ही जर्जर घर में रहते हैं। वे संघर्षषील व्यक्ति है। कुछ साल पहले उनके पास तीन एकड़ जमीन थी। लेकिन दुर्भाग्य से उनका बड़ा लड़का गंभीर रूप से बीमार हो गया। बेटे के इलाज के लिए उन्हें अपनी यह तीन एकड़ जमीन भी बेचनी पड़ी। बाद में बेटे की ससुराल से उन्हें डेढ़ एकड़ जमीन मिली। यह जमीन उनके परिवार की आजीविका का आधार है। दादाजी शुरूआत से ही खोेजी प्र्रवृत्ति के किसान रहे हैं। उन्होंने धान की कई किस्मों को विकसित करने की कोषिष की है। लोगों का मानना है कि धान की करीब छह किस्में उन्होंने विकसित की होगी। पिछले बीस साल से वे इस तरह की षोध प्र्रकिृया से बहुत ही सघन रूप से जुड़े हैं।
पिछले कई दषकों से दादाजी धान की खेती करते हैं। अस्सी के दषक से उन्होंने धान के परंपरागत बीजों को विधिवत तरीके से विकसित करने की कोषिष की है। उनका यह प्रयास रंग लाया। 1983 में पहली बार दादाजी रामजी ने अपने खेत में धान के तीन विचित्र पौधे देखे। ये पौधे खेत में लगी बाकी धान से हटकर थे। इन तीनों पौधों की देखभाल उन्होने काफी सावधानीपूर्र्र्र्वक की। दादाजी ने देखा कि इन पौधों से पैदा हुई धान भी सामान्य धान से अलग किस्म की थी। यह मुलायम और खाने में स्वादिष्ट थी। दादाजी ने धान की इस किस्म को व्यापाक स्तर पर पैदा करने का मन बनाया। उन्होंने अगले साल बीज विकसित करने के उद्देष्य से बुआई की। और फिर लगातार यह क्रम जारी रखा। करीब छह साल बाद 1989 में इस धान के काफी संख्या में बीज उत्पादित करने में वे सफल हुए। लिहाजा 1989 से वे दूसरे किसानों को उनकी माँग पर बीज देने लगे। इस धान का उत्पादन अन्य किस्मों की धान की तुलना में ज्यादा होता था इसलिए इसकी लगातार मांग बढ़ते गई।
दादाजी बताते हैं कि एक बार कुछ व्यापारी और किसान धान के बीज खरीदने के लिए उनके घर आए हुए थे। चूंकि यह बिना किसी प्रयोगषाला औेर वैज्ञानिक की सहायता के विकसित की थी अत: इसका कोई नाम नहीं था। खरीददारी के लिए आए लोगों में से एक के हाथ में एचएमटी घड़ी बंधी र्हुई थी उसने अनायास ही धान की किस्म का नाम एचएमटी बोल दिया। तब से ही यह इसी नाम से प्र्र्र्रचलित होना षुरू हो गई। विदर्भ क्षेत्र के सैंकड़ों किसान इस उन्नत किस्म की धान को इस नाम से मांगने लगे। बीज की मांग एक साल में ही दुगुनी हो गई। जब महाराष्ट्र के अकोला स्थित पंजाबराव देषमुख कृषि विद्यापीठ को इस बात का पता चला तो इस विद्यापीठ द्वारा संचालित सिंधवाही चावल स्टेषन ने 1994 में दादाजी रामजी से इस धान का पांच किलो बीज षोध करने के लिए खरीदा। चार साल बाद सन 1998 में इस विद्यापीठ की ओर से धान की यह किस्म एक अलग नाम पीकेवी एचएमटी नाम से बाजार में लाई गई। बीज की कीमत भी दुगुनी रखी गई। लोग दुखी थे क्योंकि विद्यापीठ ने बीज के साथ दादाजी का जिक्र करना भी उचित नहीं समझा। गौरतलब है कि क्षेत्र के किसान जानते थे कि इस बीज के जनक दादाजी रामजी ही हैं। इसलिए वे इस नई धान को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। सामाजिक कार्यकर्ता तथा देषी बीज को बचाने की प्रकिृया से वर्षो से जुड़े जैकब को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने स्थानीय किसानों की मदद से दादाजी के काम को प्रोत्साहित करने का मन बनाया। उन्होंने इस नवाचारी सोच रखने वाले किसान की भरसक मदद की। अंतत: लोगों का प्रयास सफल हुआ। दादाजी रामजी देशमुख को वर्ष 2005 में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा पोषित राष्ट्रीय नवाचारी प्रतिष्ठान ने सम्मानित करने का तय किया। जनवरी माह में दादाजी को पुरस्कृत किया गया। इस सम्मान के बाद दादाजी रामजी को एक अलग नजरिए से देखा जा रहा है।
दादाजी रामजी देशमुख आज भी अपना जीवन खूब संघर्ष में बिता रहे हैं। तमाम आर्थिक तंगी के वाबजूद भी वे भविष्य को लेकर आषान्वित हैं। उनका मानना है कि वे भलेही कठिनाईयों में रहे हों लेकिन उनकी अगली पीढ़ी को इस तरह की मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा। जैकब इस सामान्य जिन्दगी जी रहे अदभुत किसान से खूब प्रोत्साहित हैं उनका मानना है कि तमाम सरकारी नीतियों के कारण देषी बीजों पर हमले हो रहे हैं। हमारे अपने परंपरागत बीज आज विलुप्तप्राय होते जा रहे हैं और बदले में हाईब्रिड बीजों को थोपा जा रहा है।र् कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों की निगाह अब भारत के बीजों पर लगी हुई हैं। ऐसी कंपनियां कभी नहीं चाहेगीं कि किसान के अपने बीज विकसित हों। नए बीज कानून से तो अब किसानों के सामने और भी संकट पैदा होगें। इस तरह के संकट के दौर में दादाजी रामजी खोबरागाड़े सरीखे किसानों को तलाशने की जरूरत हैं जिन्होंने यह सिध्द कर दिया है कि प्रयोग सिर्फ प्रयोगशाला में ही नहीं होते उन्हें सीधे खेत में भी किया जा सकता है, और किए जाने की जरूरत भी है।
शिवनारायण गौर
नर्मदा कॉलोनी, ग्वालटोली
होशंगाबाद 461001 (म.प्र.)
मो. 094254 33229
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