रामरती के खेत में खड़े होइये तो लगेगा किसी जैव विविधता वाले पार्क में चले आयें हैं। मिश्रित खेती के इस प्रयोग को देखकर अचरजभरा सुख मिलता है। रबी के इस मौसम में जहां एक तरह गेहूं की फसल लहलहा रही है तो दूसरी तरफ तोरिया कटने को तैयार है और सरसों में फूल आये हुए हैं। आलू की मेड़बंदी पर मूली भी लगी है। क्यारियों की मुख्य मेड़ों पर बकला लगा हुआ है। कुछ क्यारियां राजमा और बीन्स की है तो कुछ में लहसुन और साग वाला प्याज है। फूलगोभी, पात गोभी और गांठगोभी एक ही क्यारी में क्रमश: रोपा गया है। राई की काही रंग की पत्तियां आंखों को खींचती है तो रामदाना के पौधे अभिवादन करते दिखते हैं। गाजर, टमाटर, बैगन, सोआ, पालक, धनिया, मूंग, परवल और खेसारी क्या नहीं है उनके खेत में।
एक तरफ 10 विस्वा जमीन में केले की पौधे लगे हुये हैं। उनमें इस समय घौद फूटी हुई है। रामरती बताती हैं यह रामभोग केला है। जो सब्जी और फल दोनों में प्रयोग होता है। कुछ पौधे चिनिया केला के भी है जो बिहार के सोनपुर में पैदा होता है। चीनी की तरह मीठा होने के चलते इसे चिनिया कहा जाता है। नजर घुमाइये तो एक तरफ देशी पपीते की कतार है। इन पौधों में इस समय सैकड़ों पपीते लदे हुए हैं। खेत के ही एक हिस्से के उनके बागीचे में अनार, आम, अमरूद के अलावा सागौन, शीशम और साल के पौधे भी लगे हुए हैं।
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उनकी खेती पूरी तरह जैविक
रामरती की खेती पूरी तरह जैविक है। वे अपने चार अदद दुधारू जानवरों के गोबर, बागीचे के पत्तों और सब्जियों के अपशिष्ट से जैविक खाद बनाती हैं। तम्बाकू, लहसुन आदि से कीटनाशक बनाती हैं। रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग उन्होंने वर्षो पहले छोड़ दिया। उनकी अपनी समझ है 'धरती मइया को जहरीले रसायनों से कष्ट होता है। इनके प्रयोग के बिना भी धरती मइया हमें सबकुछ दे सकती है।' निहायत ठेठ गंवई अंदाज में दिये गये उनके तर्क किसानों को सहज ही समझ में आ जाते हैं। शायद इसीलिये वे किसान विद्यालय की सबसे लोकप्रिय प्रशिक्षक हैं।
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हम भारत की नारी हैं...
हम भारत की नारी हैं फूल नहीं चिंगारी हैं। रामरती यही बोलती है। अपनी कहानी बताना नहीं भूलती कैसा दुश्वारियों भरा जीवन था। खेत में बीज डालने भर की बेवत नहीं थी। दूसरों के खेत में काम कर आजीविका चलती थी। मगर अपनी हालत बदलने की ठानी तो मदद के लिए कई हाथ भी उठ गये। दस वर्ष पूर्व गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन ग्रुप के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी। खेती में रूचि के चलते वे चयनित किसान बनी। जल, जमीन, जानवर व जन के प्रबंधन, समय व स्थान के समुचित प्रयोग से सफलता उनके कदम चूमने लगी। धान और गेहूं की दो फसल की जगह 32 से अधिक फसलों की बुआई शुरू की। इससे लागत-लाभ अनुपात 1:15 का हो गया। उनकी सफलता को देखने कृषि वैज्ञानिक उनके खेत में आयें। इस समय वह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन आत्मा से जुड़ी हुई हैं। उन्हें कई बार कृषि मेलों में प्रगतिशील किसान के बतौर सम्मानित किया जा चुका है।
अशोक चौधरी, गोरखपुर, 21 जनवरी।
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