खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Saturday, February 13, 2010

मुर्गियां रोजाना पैदा कर रही हैं 400 यूनिट बिजली

भोपाल. राजधानी से लगभग 15 किमी दूर स्थित एक पॉल्ट्री फार्म ऐसा है, जिसने गैर परंपरागत तरीके से बिजली पैदा करने का अनोखा उदाहरण पेश किया है। यहां मुर्गियों के अपशिष्ट (बीट) से हर रोज 350 से 400 यूनिट बिजली बनाई जा रही है। पारंपरिक स्रोत से इतनी बिजली की व्यावसायिक कीमत लगभग 2000 रुपए होती है, जबकि मुर्गियों की बीट से इतनी ही बिजली एक तिहाई कीमत में बन रही है।
भदभदा रोड स्थित राजेंद्र पॉल्ट्री फार्म में करीब 1 लाख 90 हजार मुर्गियां हैं, जिनकी बीट के रूप में रोजाना 20 टन से ज्यादा कचरा निकलता है। इस कचरे से पहले बायोगैस बनाई जाती है, जो जनरेटर को चलाकर बिजली उत्पन्न करती है। 21 एकड़ में फैले इस फार्म को रोशन करने वाले 20 हैलोजन (प्रत्येक 70 वॉट) और 600 सीएफएल (प्रत्येक 11 वॉट), मुर्गियों को गर्म रखने वाले 200 बल्ब (प्रत्येक 40 वॉट) और पानी की सप्लाई करने वाले 4 ट्यूब वेल (प्रत्येक 5 हार्स पॉवर का) को चलाने के अलावा फार्म कर्मचारियों के घर भी इसी बिजली से रोशन हो रहे हैं।
ऊर्जा उत्पादन के इस वैकल्पिक उपाय से फॉर्म को कई फायदे हुए हैं। इससे जहां बिजली के खर्चे में कमी आई है वहीं मुर्गियों के अपशिष्ट का कुशल निष्पादन होने से फार्म को दरुगध से मुक्ति मिली है। प्लांट में रोजाना करीब दो टन स्लरी (गैस निकलने के बाद बचा अपशिष्ट) बचती है जिसका इस्तेमाल खाद के रूप में किया जाता है। यहां तक की जनरेटर से निकलने वाली हवा भी चूजों को गर्म रखने के काम आती है।
फार्म संचालक राजेंद्र सिंह बताते हैं कि छह साल पहले तक वे सरकारी बिजली का ही इस्तेमाल करते थे। अनियमित सप्लाई के कारण कई बार डीजल से जनरेटर चलाना पड़ता था, जिससे बिजली का खर्च 60-70 हजार रुपए प्रति माह तक आता था। तब तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त एवी सिंह ने उन्हें सलाह दी कि वे अपने उपयोग के लिए खुद बिजली बनाएं।
इस मशविरे पर गौर करते हुए इंजीनियर राजेंद्र सिंह ने खुद बिजली बनाने का बीड़ा उठाया। विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ऐसे बायोगैस प्लांट की स्थापना की जिसमें मुर्गियों की बीट का इस्तेमाल होता है। यह प्रयोग सफल रहा। अब उन्हें हर महीने बिजली खर्च में लगभग 40 हजार रुपए की बचत होती है। श्री सिंह की जल्द ही इस प्लांट के विस्तार की योजना है। भविष्य में वे ट्रेक्टर चलाने में भी बायोगैस का इस्तेमाल करना चाहते हैं।
इसलिए नहीं आती दरुगध

आमतौर पर पॉल्ट्री फार्म में हर महीने एक फीसदी मुर्गियां विभिन्न कारणों से मर जाती हैं। मरी हुई मुर्गियों और टूटे अंडों का सही निपटान नहीं होने से दरुगध फैलती है। इन मुर्गियों और टूटे अंडों को भी डायजेस्टर में डाल दिया जाता है। हवा की अनुपस्थिति में डिस्पोज होने से इनसे दरुगध नहीं आती।

ऐसे बनती है बिजली

फार्म में 45-45 क्यूबिक मीटर के तीन बायोगैस डायजेस्टर लगाए गए हैं। इनमें प्रतिदिन मुर्गियों की लगभग 3 टन बीट डाली जाती है। अपशिष्ट पर बैक्टीरिया की क्रिया से डायजेस्टर में मीथेन और कार्बन-डाय-ऑक्साइडगैस बनती है। इसे पाइप के द्वारा 40 हार्स पॉवर के एक जनरेटर में भेजा जाता है। इस गैस को ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर जनरेटर को रोजाना 10 घंटे चलाया जाता है, जिससे औसतन 350 से 400 यूनिट बिजली पैदा होती। ईंधन में 20 फीसदी मात्रा डीजल की भी होती है, जिसे कम करने का प्रयास किया जा रहा है।

कुमार संभव

दैनिकभास्‍कर से साभार

2 comments:

संगीता पुरी said...

ऐसे प्रयोग हर जगह होने चाहिए !!

Kaviraaj said...

बहुत अच्छा ।

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