खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Tuesday, February 23, 2010

बीटी बैंगन पर विवेक की जीत

प्रफुल्ल बिदवई

भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग से महाइको-मोनसांटो द्वारा विकसित आनुवंशिक रूप से सुधरे बैंगनों को बिक्री के लिए बाजार में उतारने की प्रक्रिया को स्थगित करने के बारे में पर्यावरण तथा वन राज्यमंत्री जयराम रमेश ने जो ऐलान किया है, उसके लिए उनका अभिनंदन किया जाना चाहिए। बल्कि पश्चिम बंगाल, उडीसा और आंध्र प्रदेश जैसे बैंगन पैदा करने वाले बडे राज्यों के पणधारियों के साथ परामर्श की प्रक्रिया शुरू करने में के लिए वे और भी ज्यादा प्रशंसा के पात्र हैं। जो मुद्दे लोगों की आजीविका से जुडे हैं, उनके मामले में सरकारी निर्णय लिए जाने के लिए उनका यह कदम अनुकरणीय है।

इस स्थगन की विवेकपूर्ण सराहना करने के लिए किसी को उतना दूर तक जाने की जरूरत नहीं है, जितना दूर तक सेंटर फॉर सेलुलर मॉलीक्यूलर बायोलॉजी के पूर्व निर्देशक, पीएम भागवा चले गए थे, जिन्होंने अतिशयोक्ति पूर्ण शब्दों में इस निर्णय को आजादी के बाद से किसी भी मंत्री द्वारा लिया गया सबसे महत्वपूर्ण अकेला निर्णय बताया। फिर भी विश्व की सबसे ताकतवर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में एक मोनसांटो द्वारा किए गए जबदरदस्त लॉबी प्रचार के मद्देनजर यह निर्णय लेना आसान नहीं था।
मोनासांटो ने जिसका विश्व स्तर पर आनुवंशिक रूप से सुधारे जीएम बीजों के 84 प्रतिशत बाजार पर नियंत्रण है, और जिसकी अमरीकी और भारतीय सरकारों में लम्बी पंहुच है, अन्य ऐसी जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों और पादप प्रजनक समूहों के साथ मिल कर जिनका जीएम खाद्य पदार्थों के विकास में पैसा लगा हुआ है, लॉबी प्रचार किया था। उन्हें कॉर्पोरेट मीडिया के बडे-बडे वर्गों का भी समर्थन प्राप्त थी, जिन्होंने बीटी बैंगन के लिए जोरदार अभियान चलाया था और जिन्होंने जीएम प्रौद्योगिकी को सुरक्षित बताते हुए दावा किया था कि उसमें कोई समस्या पैदा नहीं होती और वह भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मोनसांटो एक ताकतवर और उद्यमशील बहुराष्ट्रीय कंपनी है जो बहुत तेजी से काम करती है और आनुवंशिक रूप से बीजों का सुधार करने और उन्हें अलग-अलग पैमानों पर उगाने से पहले औपचारिक अनुमति तक के लिए इंतजार नहीं करती। उसने घर के भेदियों को इस्तेमाल करने की रणनीति अपनाई है। उसने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतरिम आने वाले भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं तथा महाइको के साथ मिलकर जो एक महाराष्ट्र स्थित कंपनी है, जिसके साथ कृषि मंत्री शरद पवार के करीबी संबंध हैं, यह सब काम किया है। मोनसांटो की इस कपंनी में 26 प्रतिशत इक्विटी है। बीटी बैंगन एक ऐसी सब्जी है जिसमें थुरिंजाइनिसिम नामक जीवाणु का जीन प्रवेश कराकर उसमें कीटाणु नाशक, पैदा किए गए हैं। ऐसी सब्जी के इस्तेमाल की इजाजत देने के खिलाफ जो दलील दी जा सकती है, वह अकाटय है। जीएम खाद्य पदार्थों के दीर्द्यकालिक स्वास्थ्य तथा पर्यावरणिक प्रभावों के बारे में विज्ञान इतना कुछ नहीं जानता कि वह उनके सुरक्षित होने के बारे में निश्चित रूप से कह सके। जिस अवयव में बाहरी जीनाें को प्रवेश कराया जाता है, उसमें पैदा होने वाले खतरे और उन जीवों के मानव पाचन तंत्रों में अंतरित होने की संभावना और उससे स्वास्थ्य पर पडने वाले प्रभाव ऐसे विषय हैं, जिनके बारे में अभी पूरी जानकारी हासिल नहीं की जा सकी है। इसलिए बैंगन जैसी सब्जी, जिसकी 2,200 किस्में भारत में उगाई जाती हैं, जिसका कुल उत्पादन 84 लाख टन है, के जीएम बीजों को बाजार में उतारने से पैदा होने वाली उलझनों के बारे में कुछ मालूम नहीं है।
जिन अध्ययनों के आधार पर महाइको-मोनसांटो ने आनुवंशिक इंजीनियरींग अनुमोदन समिति (जिसका नाम बदलकर आनुवंशिक इंजीनियर जायजा समिति कर दिया गया) से बीटी बैंगन की मंजूरी की गुजारिश की थी, वे सब मोनसांटो तथा उसके सहयोगियों द्वारा किए गए थे। उनमें से अधिकतर केवल घोर विषाक्तता और त्वचा पर खुजली होने जैसी एलर्जिक प्रभावों की ही जांच करते हैं। लेकिन इससे काफी ज्यादा महत्वपूर्ण चिरकालिक विषाक्तता या बीटी बैंगन खाने के दीर्घकालिक प्रभावों पर बहुत कम अध्ययन किए गए हैं। ये अध्ययन चूहों, खरगोशों और बकरियों पर किए गए 10 दिन के परीक्षणों तक ही सीमित हैं, जिस अवधि के बारे में मोनसांटो का यह दावा है कि यह मानव जीवन के 21 के वर्षों के बराबर है।
लेकिन बहुत से वैझानिकों ने इस बारे में कई सवाल उठाए हैं और उन्होंने अलग किस्म के परीक्षणों की दलील दी है। उनका कहना है कि बैंगन में कई प्राकृ तिक विषाक्त तत्व होते हैं, और यदि उनमें जीन संबधी छेड़छाड़ की जाए तो ये पदार्थ ज्यादा जहरीले भी बन सकते हैं। वैझानिकों को इस बारे में पर्याप्त जानकारी हासिल नहीं हो सकी कि प्रवेश कराए गए जीन (क्राई आई एसी)से पैदा होने वाले विषाक्त तत्व भोजन या मानव आहार में विघटित कैसे होते हैं। यहां तक कि मानसांटो भी इस बात को स्वीकार करता है कि ये तत्व क्षारीय परिवेश में सक्रिय भी बने रह सकते हैं। और मानव पाचन प्रणाली थोड़ी सी क्षारीय होती है, तेजाबी नहीं। किसान सदियों से बीजों का चुनाव करते रहे हैं और कलम लगाने का काम करते रहे हैं। इस मामले में एहतियाती सिद्दांत की यह मांग है कि बीटी बैंगन बिक्री के लिए बाजार में न उतारे जाएं। रमेश ने आनुवांशिक इंजीनियरींग जायजा समित के इस बात को खयाल में नहींरखा कि महाइको-मानसांटो ने आनुवांशिक सामग्री के आयात में सही कार्य विधियों को दरकिनार करते हुए उपयुक्त मार्गनिर्देश जारी किए जाने से पहले ही बीटी बैंगनो की खेती कर डाली थी। बीटी बैंगन के मामले से कुल संबंधित मुद्दों पर जनता का ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। इनमें से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है बीजों पर कॉर्पोरेट नियंत्रण, जीएम पौधों से जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव और वैझानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता। कॉरपोरेशन ऐसा बीज तैयार करते हैं कि किसान उन्हें दोबारा नहीं उगा सकते और उन्हें हर वर्ष लौट कर कपंनियों के पास जाना पड़ता है । वे एक ऐेसी बौध्दिक संपदा अधिकार व्यवस्था भी चाहते हैं जिसके अंतर्गत किसान अपने दूसरे साल के लिए भी बीज दोबारा नही उगा सकता। यह बहुत ही गलत बात है। जीएम फसलों को मंजूरी देते या उसे नामंजूर करते समय सुरक्षा के अलावा नियंत्रण संबंधी मुद्दे को भी खयाल में रखा जाना चाहिए।
बीटी बैंगन की बाजार में बिक्री को स्थगित करके श्री रमेश ने संभवत: अपने इरादे से भी ज्यादा लोकतंत्र की सेवा की है।
दैनिक देशबन्‍धु से


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