केन्द्र सरकार ने गत 29 जनवरी को रबी फसलों के न्युनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिए। कुछ फसलों के समर्थन मूल्य में वृध्दि की गई है। जैसे गेहूं का समर्थन मूल्य 1000 रुपए से बढ़ाकर 1080 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है। इसी तरह चने के मूल्य में वृध्दि की गई है। अब चना 1600 के बजाय 1730 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदे जाएंगें। कुछ और फसलों के दाम भी बढ़ाए गए हैं। सरकार ने जान बूझकर या अनजाने में इस साल काफी देरी से समर्थन मूल्य की घोषणा की है। यदि आपको याद हो तो पिछले साल अक्टूबर के महिने में सरकार ने समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी थी। खैर देर से ही सही थोड़ी बढ़ोत्तरी के साथ मूल्यों की घोषणा की गई है।
पिछले साल जब गेहूं का समर्थन मूल्य घोषित किया गया था तो इसमें 250 रुपए की वृध्दि की गई थी। 750 से बढ़ाकर 1000 रुपए समर्थन मूल्य किया गया था। असल में किसान की एक बड़ी समस्या फसलों का उचित दाम नहीं मिलना है। स्वयं सरकार इस बात को स्वीकार करती है कि उत्पादन लागत से कम समर्थन मूल्य दिया जा रहा है। यदि समर्थन मूल्य को नियंत्रण में रखना है तो कम से इस बात की ओर तो ध्यान दिया ही जाना चाहिए कि उत्पादन लागत को कैसे कम किया जा सकता है। आज स्थिति है कि फसलों की उत्पादन लागत लगातार बढ़ रही है। उत्पादन में ठहराव आते जा रहा है। एक समय में पंजाब में खूब उत्पादन हुआ लेकिन अब वहां हालात ठीक नहीं है जमीन अपनी उर्वरा शक्ति खो चुकी है। किसान परेशान हैं। अब दूसरे कई राज्यों में भी वैसी ही स्थिति बनने की नौबत आ रही है। यदि हम मध्यप्रदेश की बात करें तो वहां भी लागत में अनवरत वृध्दि जारी है। बात केवल गेहूं की ही नहीं हर फसल के साथ यह हो रहा है।
कई देशों में किसानों को सब्सिडी सीधे दी जाती है जिससे वे अपनी उत्पादन लागत पर नियंत्रण रख सकें लेकिन भारत में तो वह भी सम्भव नहीं है यहां जो भी सब्सिडी मिलती है वो कम्पनियों को दी जाती है जिसका सीधा फायदा किसानों को नहीं मिलता और उत्पादन लागत पर कोई नियंत्रण नहीं हो पाता। यह एक गम्भीर मसला है जिस पर खेती का भविष्य टिका हुआ है। हमें सामूहिक रूप से इस पर विचार करना चाहिए।
किसान को फसल के उत्पादन का उचित मूल्य मिले यह एक गम्भीर मसला है इस पर गहन चिन्तन की ज़रूरत है। सवाल यह भी है कि वास्तविक लागत का आंकलन करने के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। आमतौर पर किसान उत्पादन लागत में उसके श्रम और जमीन के मूल्य को कभी नहीं जोड़ता। होशंगाबाद जिले में कार्यरत एक स्वयं सेवी संस्था ग्राम सेवा समिति ने इस दिशा मेें एक पहल की थी उसने किसानों से फसल के उत्पादन की लागत निकालने के लिए सर्वे और प्रशिक्षण दोंनो किए थे। इसका कुछ प्रभाव क्षेत्र के किसानों में दिखाई भी दिया। पर ऐसे काम को व्यापक स्तर पर किए जाने की आवश्यकता है।
पिछले साल जब गेहूं का समर्थन मूल्य घोषित किया गया था तो इसमें 250 रुपए की वृध्दि की गई थी। 750 से बढ़ाकर 1000 रुपए समर्थन मूल्य किया गया था। असल में किसान की एक बड़ी समस्या फसलों का उचित दाम नहीं मिलना है। स्वयं सरकार इस बात को स्वीकार करती है कि उत्पादन लागत से कम समर्थन मूल्य दिया जा रहा है। यदि समर्थन मूल्य को नियंत्रण में रखना है तो कम से इस बात की ओर तो ध्यान दिया ही जाना चाहिए कि उत्पादन लागत को कैसे कम किया जा सकता है। आज स्थिति है कि फसलों की उत्पादन लागत लगातार बढ़ रही है। उत्पादन में ठहराव आते जा रहा है। एक समय में पंजाब में खूब उत्पादन हुआ लेकिन अब वहां हालात ठीक नहीं है जमीन अपनी उर्वरा शक्ति खो चुकी है। किसान परेशान हैं। अब दूसरे कई राज्यों में भी वैसी ही स्थिति बनने की नौबत आ रही है। यदि हम मध्यप्रदेश की बात करें तो वहां भी लागत में अनवरत वृध्दि जारी है। बात केवल गेहूं की ही नहीं हर फसल के साथ यह हो रहा है।
कई देशों में किसानों को सब्सिडी सीधे दी जाती है जिससे वे अपनी उत्पादन लागत पर नियंत्रण रख सकें लेकिन भारत में तो वह भी सम्भव नहीं है यहां जो भी सब्सिडी मिलती है वो कम्पनियों को दी जाती है जिसका सीधा फायदा किसानों को नहीं मिलता और उत्पादन लागत पर कोई नियंत्रण नहीं हो पाता। यह एक गम्भीर मसला है जिस पर खेती का भविष्य टिका हुआ है। हमें सामूहिक रूप से इस पर विचार करना चाहिए।
किसान को फसल के उत्पादन का उचित मूल्य मिले यह एक गम्भीर मसला है इस पर गहन चिन्तन की ज़रूरत है। सवाल यह भी है कि वास्तविक लागत का आंकलन करने के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। आमतौर पर किसान उत्पादन लागत में उसके श्रम और जमीन के मूल्य को कभी नहीं जोड़ता। होशंगाबाद जिले में कार्यरत एक स्वयं सेवी संस्था ग्राम सेवा समिति ने इस दिशा मेें एक पहल की थी उसने किसानों से फसल के उत्पादन की लागत निकालने के लिए सर्वे और प्रशिक्षण दोंनो किए थे। इसका कुछ प्रभाव क्षेत्र के किसानों में दिखाई भी दिया। पर ऐसे काम को व्यापक स्तर पर किए जाने की आवश्यकता है।
शिवनारायण गौर
1 comment:
हमारे किसान बहुत सीधे सादे हैं....स्वयंसेवी संस्थाओं को उनकी मदद करनी चाहिए....सरकार को भी...
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