मुझे आज भी वह दिन याद है जिस वर्ष सोयाबीन की लहलहाती हुई फसल को तम्बाकू इल्लियों ने चट कर लिया था और हम कुछ नहीं कर पाए। हमारे कृषि वैज्ञानिक इस भयानक घटना के सामने बौने साबित हुए। सारे कीटनाशक (जहर) इस तम्बाकू इल्ली पर बेअसर हुए। उस वर्ष सोयाबीन का उत्पादन न के बराबर हुआ। होशंगाबाद जिले का किसान कर्ज में दब गया। विगत कई वर्षों से हो रही सोयाबीन की आमदनी ने किसानों के दैनिक उपयोग के खर्चे में काफी वृध्दि कर रखी थी, ऐसी स्थिति में कर्ज चुकाना तो दूर दैनिक उपयोग की वस्तु खरीदने से भी मोहताज था। फिर भी किसान वर्ग उदास तो था पर निराश नहीं हुआ। दूसरे वर्ष फिर सोयाबीन की बोनी की ओर कर्ज लेकर लागत लगाई। फसल तैयार हुई किन्तु फल्ली नहीं लगी। सोयाबीन बांझ रह गया। जो फसल किसान को वर्षों से अच्छी आमदनी दे रही थी आज वही उसे धोका दे गई।
शायद यह हमारी ही किसी भूल का नतीजा रहा हो क्योंकि विगत कई वर्षों से हम भरपूर रासायनिक खाद की मात्रा और कीटनाशक दवा का प्रयोग कर रहे हैं। शायद इस तरह की अति के कारण भूमि के गर्भ में पलीत मित्र कीट नष्ट हुए हो इसका दुष्परिणाम हमें सोयाबीन पर बढ़ते संकट एवं उत्पादन में कमी के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
वर्तमान में सोयाबीन के विक्रय के रूप में प्रारम्भ हुआ धान का सिलसिला, धान भी गेहूं की तरह पोषक तत्वों की मात्रा ग्रहण करती है। यदि देखा जाए तो आज हमारी उसी भूमि में सोयाबीन की अपेक्षा धान में रासायनिक एवं कीटनाशकों का अधिक उपयोग किया जा रहा हैं यह चिन्ता का विषय है क्योंकि अनेक वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के द्वारा जानकारी मिली कि रासायनिक खाद की अधिक मात्रा के भूमिगत दुष्प्रभाव भी पड़ रहे हैं। जैसे 1. उपजाउ भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है। 2. अधिक रासायन की मात्रा के कारण भूमि की मिट्टी दिन प्रतिदिन सख्त हो रही है। और 3. जल ग्रहण क्षमता में भी कमी देखी जा रही है। इस प्रक्रिया से उत्पादन तो प्रभावित होगा ही भविष्य में भूमि बंजर भी हो सकती है।
भविष्य के खतरों को देखते हुए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जिसका सुलभ और सहज तरीका जैविक खेती है। जैविक खेती एक टिकाउ पध्दति है। यह हमारी परम्परागत विधि भी है और इससे किसी भी प्रकार के दुष्परिणाम नहीं मिलेंगे।
लालता प्रसाद
शायद यह हमारी ही किसी भूल का नतीजा रहा हो क्योंकि विगत कई वर्षों से हम भरपूर रासायनिक खाद की मात्रा और कीटनाशक दवा का प्रयोग कर रहे हैं। शायद इस तरह की अति के कारण भूमि के गर्भ में पलीत मित्र कीट नष्ट हुए हो इसका दुष्परिणाम हमें सोयाबीन पर बढ़ते संकट एवं उत्पादन में कमी के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
वर्तमान में सोयाबीन के विक्रय के रूप में प्रारम्भ हुआ धान का सिलसिला, धान भी गेहूं की तरह पोषक तत्वों की मात्रा ग्रहण करती है। यदि देखा जाए तो आज हमारी उसी भूमि में सोयाबीन की अपेक्षा धान में रासायनिक एवं कीटनाशकों का अधिक उपयोग किया जा रहा हैं यह चिन्ता का विषय है क्योंकि अनेक वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के द्वारा जानकारी मिली कि रासायनिक खाद की अधिक मात्रा के भूमिगत दुष्प्रभाव भी पड़ रहे हैं। जैसे 1. उपजाउ भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है। 2. अधिक रासायन की मात्रा के कारण भूमि की मिट्टी दिन प्रतिदिन सख्त हो रही है। और 3. जल ग्रहण क्षमता में भी कमी देखी जा रही है। इस प्रक्रिया से उत्पादन तो प्रभावित होगा ही भविष्य में भूमि बंजर भी हो सकती है।
भविष्य के खतरों को देखते हुए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जिसका सुलभ और सहज तरीका जैविक खेती है। जैविक खेती एक टिकाउ पध्दति है। यह हमारी परम्परागत विधि भी है और इससे किसी भी प्रकार के दुष्परिणाम नहीं मिलेंगे।
लालता प्रसाद
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