रासायनिक खेती जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारक हैं जबकि जैविक खेती से जलवायु तो बेहतर होता ही है इससे जमीन की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ती है। नवधान्य संस्था की संस्थापक निदेशक डॉ. वंदना शिवा ने पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेन्स में यह बातें कहीं। वे 'भोजन का भविष्य - जलवायु परिवर्तन' विषय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रही थीं इसमें देश विदेश से आए कई विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।
डॉ. शिवा ने नवधान्य की ओर से हुए शोध के हवाले से बताया कि रासायनिक खेती की तुलना में जैविक खेती से कार्बन पृथक्करण में 25 फीसद बढ़ोत्तरी होती है। मिट्टी में पानी रोकने की क्षमता भी 17 फीसद बढ़ जाती है। जैविक खेती को लेकर भांति फैलाई जाती है कि इसमें उपज कम और रासायनिक खाद के प्रयोग से अधिक उत्पादन होता है। जबकि शोध में पाया गया कि जैविक खेती करने वालों की आमदनी भी ज्यादा होती है। आनुवंशिक रूप से परावर्धित रासायनिक बीटी कपास की खेती करने वालों की तुलना में जैविक खेती करने वाले किसानों की दस गुना अधिक आमदनी हुई।
उन्होंने बताया कि कीट पतंगों का बीटी कपास पर कोई प्रभाव नहीं होता ऐसा दावा किया जाता रहा है जबकि इस कपास में कीटनाशकों की कीमत सामान्य से 11 फीसद अधिक पड़ती है। जैविक खेती का प्रचार प्रसार करने वाले नारायण रेड्डी इथोपिया के टिकाऊ विकास संस्थान के सू एडवर्डस बेनवर्ड गेयर सहित कई वक्ताओं ने विचार रखे। वक्ताओं ने चिंता जताते हुए कहा कि जैविक खेती को जलवायु संवर्धन के लिए बढ़ावा देने की बजाय जलवायु परिवर्तन पर बनी राष्ट्रीय कार्य योजना आनुवंशिक रूप से परावर्धित फसल पर खासतौर से केंद्रित है। यह रणनीति सरासर गलत है। यह न केवल खाद्य सुरक्षा के लिए खतरनाक है बल्कि जलवायु संवर्धन के लिए घातक है।
डॉ. जॉनन फैगन, डॉ. माई वान हो, डॉ. इरिना एमीकोवा और डॉ. शिव चोपड़ा सहित कई वैज्ञानिकों ने बताया कि आनुवंशिक रूप से परावर्धित फसल और आनुवंशिक अभियांत्रिकी कितनी घातक है इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इस तकनीक से उत्पादकता तो नहीं बढ़ी उल्टे उसने फसल और पशुओं की उत्पादन क्षमता को नष्ट कर दिया है।
रूस की विज्ञान अकादेमी के अध्ययन से पता चलता है कि साधारण सोया पर निर्भर चूहों की तुलना में आनुवंशिक रूप से परावर्धित सोयाय पर निर्भर चूहों की मृत्यु दर 50 फीसद अधिक है। जीएम सोयाय खिलाकर पाले गए चूहे बांझ हो गए थे और इमें टयूमर के ज्यादा मामले भी पाए गए। सम्मेलन में देशभर से प्रस्तुत किए गए परचों से पता चला कि आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, ओर पंजाब में बीटी कपास के खेत में घास चरने वाली भेड़ों की बड़ी संख्या में मौत हो गई। इससे भी खतरनाक बात यह है कि खाद्य सुरक्षा नियमावली में इसकी अभी भी उनदेखी की जा रही है।
खाद्य सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के लिए बीजों को पेटेंट भी घातक है। इससे किसानों की आत्मनिर्भरता खतरे में पड़ रही है। और बीज ही नहीं पूरी खेती पर बीज कंपनियों का एकाधिकार बढ़ रहा है। वक्ताओं ने बीज के पेटेंट रोकने की मांग की। जीएमओ और रासायनिक खादों पर अरबों रुपए की सबसिडी खत्म करने की मांग भी की।
डॉ. शिवा ने नवधान्य की ओर से हुए शोध के हवाले से बताया कि रासायनिक खेती की तुलना में जैविक खेती से कार्बन पृथक्करण में 25 फीसद बढ़ोत्तरी होती है। मिट्टी में पानी रोकने की क्षमता भी 17 फीसद बढ़ जाती है। जैविक खेती को लेकर भांति फैलाई जाती है कि इसमें उपज कम और रासायनिक खाद के प्रयोग से अधिक उत्पादन होता है। जबकि शोध में पाया गया कि जैविक खेती करने वालों की आमदनी भी ज्यादा होती है। आनुवंशिक रूप से परावर्धित रासायनिक बीटी कपास की खेती करने वालों की तुलना में जैविक खेती करने वाले किसानों की दस गुना अधिक आमदनी हुई।
उन्होंने बताया कि कीट पतंगों का बीटी कपास पर कोई प्रभाव नहीं होता ऐसा दावा किया जाता रहा है जबकि इस कपास में कीटनाशकों की कीमत सामान्य से 11 फीसद अधिक पड़ती है। जैविक खेती का प्रचार प्रसार करने वाले नारायण रेड्डी इथोपिया के टिकाऊ विकास संस्थान के सू एडवर्डस बेनवर्ड गेयर सहित कई वक्ताओं ने विचार रखे। वक्ताओं ने चिंता जताते हुए कहा कि जैविक खेती को जलवायु संवर्धन के लिए बढ़ावा देने की बजाय जलवायु परिवर्तन पर बनी राष्ट्रीय कार्य योजना आनुवंशिक रूप से परावर्धित फसल पर खासतौर से केंद्रित है। यह रणनीति सरासर गलत है। यह न केवल खाद्य सुरक्षा के लिए खतरनाक है बल्कि जलवायु संवर्धन के लिए घातक है।
डॉ. जॉनन फैगन, डॉ. माई वान हो, डॉ. इरिना एमीकोवा और डॉ. शिव चोपड़ा सहित कई वैज्ञानिकों ने बताया कि आनुवंशिक रूप से परावर्धित फसल और आनुवंशिक अभियांत्रिकी कितनी घातक है इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इस तकनीक से उत्पादकता तो नहीं बढ़ी उल्टे उसने फसल और पशुओं की उत्पादन क्षमता को नष्ट कर दिया है।
रूस की विज्ञान अकादेमी के अध्ययन से पता चलता है कि साधारण सोया पर निर्भर चूहों की तुलना में आनुवंशिक रूप से परावर्धित सोयाय पर निर्भर चूहों की मृत्यु दर 50 फीसद अधिक है। जीएम सोयाय खिलाकर पाले गए चूहे बांझ हो गए थे और इमें टयूमर के ज्यादा मामले भी पाए गए। सम्मेलन में देशभर से प्रस्तुत किए गए परचों से पता चला कि आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, ओर पंजाब में बीटी कपास के खेत में घास चरने वाली भेड़ों की बड़ी संख्या में मौत हो गई। इससे भी खतरनाक बात यह है कि खाद्य सुरक्षा नियमावली में इसकी अभी भी उनदेखी की जा रही है।
खाद्य सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के लिए बीजों को पेटेंट भी घातक है। इससे किसानों की आत्मनिर्भरता खतरे में पड़ रही है। और बीज ही नहीं पूरी खेती पर बीज कंपनियों का एकाधिकार बढ़ रहा है। वक्ताओं ने बीज के पेटेंट रोकने की मांग की। जीएमओ और रासायनिक खादों पर अरबों रुपए की सबसिडी खत्म करने की मांग भी की।
No comments:
Post a Comment