खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Friday, October 10, 2008

कृषि क्षेत्र में भी अमरीका का प्रवेश

2006 से ही भारत अमरीका परमाणु करार पर बहस होती रही है। पर एक महत्‍वपूर्ण करार पर आवश्‍यक रू‍प से विचार नहीं किया गया जिस पर उसी समय दोनों देश के बीच हस्‍ताक्षर कर दिए गए। वह है कृषि शिक्षा, अनुसंधान, सेवा तथा वाणिज्यिक लिंकेज (अनुबंध) से संबंधित भारत अमरिका ज्ञान पहलकदी (केआईए)।

इस समझौते में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि क्रष्ज्ञि अनुसंधान के क्षेत्र में निजी खिलाड़ियों की मुख्‍य भूमिका होगी जो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ( आईसीएआर) तथा राज्‍य स्‍तरीय कृषि विश्‍वविद्यालयों में भावी प्राथमिकताओं का निर्धारण करेंगे। 2006 की संयुक्‍त घोषणा ने सार्वजनिक निजी भागीदारी का दर्शन प्रस्‍तुत किया, जहां निजी क्षेत्र अनुसंधान क्षेत्रों की पहचान करने में मदद देंगे जिनके पास दोनों देशों में कृषि विकास के लिए नई तथा वाणिज्यिक य्‍प से अक्षम टेक्‍नॉलॉजी को विकसित करने की क्षमता है।

एक मुकाम तय की गई भारतीय कृषि ो एक व्‍यावसायिक दिशा की ओर बढ़ना है जहां अमरीका की अधिकाधिक घुसपैठ होगी। इसके लिए यह आवश्‍यक होगा कि सार्वजनिक क्षेत्र के अनुसंधान क्षेत्रों में भी प्रवेश किया जाए। न केवल अनुसंधान के पुनर्निमाण के वास्‍ते वैज्ञानिक विशेषज्ञता के लिए दिशा-निर्देश भी दिया जाएगा जैसा कि उद्योग की मांग होगी, बल्कि किसानों के खेतों पर भी उसे लागू करने की बात कही जा रही है। विशाल भारतीय कृषि अनुसंधान व्‍यवस्‍था और उसके विस्‍तार सेवा नेटवर्क ने पहले ही फ्रेमवर्क प्रदान कर दिया है।

अनेक तरह से यह कोई नई वास्‍तवकिता नहीं है। अमरीकी तथा अन्‍य कार्पोरेट हितों ने इस नई किस्‍म की हरित क्रांति को प्रायोजित किया है। कृषि से संबंधित ज्ञान पहलकदमी (केआईए) जैसी पहलकदमी भारतीय कृषि को नया रूप देने में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाएगी।

केआईए अपने उद्देश्‍य को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इसके कार्यकलापों में शामिल हैं बायो टेक्‍नालॉजी के क्षेत्रों में इंटर्नशिप या भारती-वालमार्ट जैसे सहयोग के जरिए उसमें प्रवेश करना। अप्रैल 2008 में पिछली बैठक ने छात्रों के लिए सार्वजनिक निजी इंटर्नशिप की छानबीन करने के लिए एक दिश-निर्देश तय किया। बाया-टेक्‍नॉलोजी के सिलसिले में एक अरहर तूर जेनोमिक्‍स पहलकदमी की स्‍थापना की है। और चावल तथा गेहूँ पर सहयोग अनुसंधान प्रोजेक्‍ट संगठित किया है। उसने तेजपत्‍ता, पपीता, केला तथा आलू के संबंध में अनुसंधान प्रोजेक्‍ट को भी बढ़ावा दिया है।

जब कृषि प्रोसेसिंग और विपणन के क्षेत्र को गति प्रदान करने की बात आती है तो केआईए ठेका फार्मिंग तथा मूल्‍य वर्धित उत्‍पादों पर जोर देती है। जैव-ईंधन की अगली पीढ़ी पर फोकस भी इस कार्य क्षेत्र का एक महत्‍वतपूर्ण क्षेत्र है।

लेकिन इस सबके आधार पर ही सवाल किया जा रहा है् अब कृषि को नई दिशा देने की रणनीति में छोटे तथा सीमांत किसानों को एकदम किनारे कर दिया गया है। कृषि अनुसंधान के परिवर्तित चेहरे एवं किसान नव परिवर्तन को कोई जगह नहीं दी गई है, जिसने एक साफ सन्‍देश दिया है। जरूरत इस बात की है कि अनुसंधान को किसानोन्‍मुख बनाया जाए और उसे वैज्ञानिकों की सहायता दी जाए न कि उसे राजनैतिक रूप दिया जाए।

इसके साथ ही यह द्रष्टिकोण ऐसा है जो अनुसंधान को संस्‍थागत रूप नहीं देता। इसका नतीजा होगा कि अंततोगत्‍वा अनुसंधान संस्‍थानों को संस्‍थागत ढॉंचे से अनुसंधान पर अपने नियंत्रण को छोड़ना पड़ेगा। जाहिर है कि इस समझैते पर भी बहस होनी चाहिए।

"कांची कोहली एवं शांलिनी भूटानी द्वारा लिखित यह लेख साप्‍ताहिक मुक्तिसंघर्ष के 28 सितम्‍बर से 4 अक्‍टूबर 2008 के अंक में छपा है। यह एक महत्‍वपूर्ण मुद्दा है जिस पर कम जानकारी उपलब्‍ध है। यदि आप इस विषय में कुछ जानकारी रखते हैं तो इस मुद्दे पर समझ बनाने के लिए अपनी राय दें। बहस को आगे बढ़ाऍं - शिवनारायण गौर

No comments: