खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Wednesday, July 23, 2008

जैविक खेती के अनुभव

रासायनिक खेती से जैविक खेती की ओर वापस लौटने का दौर शुरू हो गया है। कई किसान जो कि खेती में बढ़ती लागत से परेशान हो गए हैं वैकल्पिक रास्ते तलाश रहे हैं। इस विकल्प का एक रास्ता है कि बिना खाद की खेती की जाए। निश्चित ही इससे लागत तो कम होती ही है गुणवत्ता के रूप में भी जैविक अनाज का कोई मुकाबला नहीं है। मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के कुछ गांवों के किसानों ने जैविक खेती करना शुरू किया है। गौरतलब है कि होशंगाबाद वह जिला है जहां तवा नदी पर एक बड़ा बांध बना है। सत्तर के दशक में बने इस बांध के बाद जिले की खेती में एक बड़ा बदलाव आया था। ज्यादा उत्पादन की होड़ ने किसानों को भरपूर रासायनिक खाद के इस्तेमाल की ओर धकेगा। कुछ समय के बाद उत्पादन में एक ठहराव आया और लागत बढ़ने लगी। अब कई किसान वापस जैविक खेती करने लगे हैं। पिछले दिनों ऐसे ही किसानों की एक बैठक होशंगाबाद के पास के एक गांव रोहना में आयोजित की गई यहां प्रस्तुत है इस बैठक में आए किसानों की कुछ बातें उनके ही शब्दों में:-

मैने अपनी एक एकड़ जमीन में रवि की गेहूं की फसल जैविक विधि से ली। इसमें मैंने नाडेप खाद का उपयोग किया। एक एकड़ जमीन में दो ट्राली नाडेप खाद डाला। साथ ही इसमें एक बोरी डीएपी एवं एक बोरी यूरिया डाला। इस रकबे में 14 क्विंटल गेहूं का उत्पादन हुआ।
लखन वर्मा, ग्राम बड़ोदिया कला

मैंने एक क्विंटल गेहूं में एक बारे डीएपी एवं 1.5 बोरी यूरिया डाला शेष नाडेप खाद एवं जीवमृत का उपयोग किया। इसमें 2.5 टैंक गेहूं निकला। 30 किलोग्राम चने की बोनी की थी जिसमें 7 क्विंटल चना निकला। इस चने की फसल पर मही एवं गोमूत्र का स्प्रे किया था। 2 एकड़ में गेहूं एवं आधा एकड़ में चना बोया था। इस 3 एकड़ में 3 ट्राली भू नाडेप खाद का उपयोग किया गया था।
शिवराम यादव, ग्राम पतलई

हम एक नई किस्म के सोयाबीन को बोने की तैयारी कर रहे हैं। यह किस्म पास ही के आगरा गांव के लक्ष्मीनारायण शर्मा नामक किसान ने बैतूल से लाए हैं। इसका औसत उत्पादन 16 क्विंटल प्रति एकड़ के लगभग है। मैंने गेहूं की फसल इस वर्ष ली। मैंने इन्दौर से गेहूं बीज लाया था, इसकी कीमत 1800 रुपए प्रति क्विंटल थी। इसका अच्छा उत्पादन रहा। इस उत्पादन को हमने इन्दौर की कंपनी को 3000 रुपए प्रति क्विंटल बेच दिया।
हमने सब्जी की खेती जैविक तरीके से की थी। सब्जी में फूलगोभी प्रमुख रूप से ली। जैविक खाद में वर्मी कम्पोस्ट डाला जिससे फूलगोभी का आकार बड़ा आया एवं उसका स्वाद भी अच्छा रहा। इसी जैविक के अनुभव को हमने गांव के दो तीन लोगों से करने को कहा वह भी आगामी समय में वर्मी कम्पोस्ट एवं नाडेप खाद बनाकर फसल पर इस्तेमाल करने का मन बना रहे हैं।
सीताबाई चौरे, बाईखेड़ी

मैंने अपने खेत में नाडेप खाद का उपयोग किया। हालांकि अभी मैंने रासायनिक खाद का भी उपयोग किया है। मेरा मानना है कि एक दम से जैविक खेती सम्भव नहीं है। धीरे धीरे ही रासायनिक खाद को कम किया जा सकता है। मैंने उन्द्राखेड़ी गांव की अनुसुईया बाई से जैविक के उपयोग करने की बात कही है। अनुसुईया बाई आगामी फसल में जैविक खाद का उपयोग करेंगी।
मैं अपने मकान के पीछे बाड़े में सब्जी में गोबर की खाद का ही उपयोग कर रही हूं। मैं अपने आस पड़ोस के लोगों से भी जैविक खाद का प्रयोग करने को कहती हूं।
दीपा यादव, रोहना

मैं आधा एकड़ जमीन में अर्धजैविक खेती कर रही हूं। इसमें मैंने गेहूं लगाए थे इससे रासायनिक खाद के उपयोग मे ंकमी हुई है।
विट्टन बाई, ग्राम देशमोहनी

1 comment:

Anonymous said...

ये वापस लौटना क्या होता है जी. जब वापस आ ही रहे थे तो लौटने की क्या जरूरत थी चले आते... एक अर्थ के लिए दो दो शब्दों का इस्तेमाल... शब्दों के मितव्ययी इस्तेमाल के अलावा लेख बढिया है... पर वे पढ पाएंगे क्या जिनके हाथों में हल का फल है...