खेती में यद्यपि तो सतत रूप से विभिन्न बदलाव आते रहे हैं लेकिन यदि आजादी के बाद से हुए बदलावों को सूचीबध्द किया जाए तो कुछ इस तरह का दृश्य सामने आता है। यहां हम प्रमुख रूप से मध्यप्रदेश राज्य की खेती के बारे में जिक्र कर रहे हैं लेकिन कुछ बदलाव तो ऐसे हैं जो कि राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रभाव छोड़ने वाले होते हैं। कुछ का असर स्थानीय स्तर पर ज्यादा दिखाई देता है। यह एक मोटी लिस्ट है इसमें कई बातें जोड़ी जा सकती हैं।
1- महिला और खेती:- मशीनीकृत खेती का आरंभ हरितक्रान्ति के दौरान (60 के दशक) शुरू हुआ जिससे महिलाओं के श्रम की अवहेलना हुई और महिालाओं के श्रम के दिन घटे। महिला मजदूरों में बेरोजगारी बढ़ी!
2- आयाकट कार्यक्रम:- आयाकट एक तमिल शब्द है जिसका अर्थ होता है - समग्र और समन्वित। 1974 से होने वाले बड़े बाँधों द्वारा सिंचाई को आयाकट कहा गया। जैसे तवा आयाकट, बारना आयाकट, चम्बल आयाकट आदि। कृषि उत्पादन में जुटे सभी विभागों को एक ही छत के अंतर्गत लाया गया। यद्यपि यह कार्यक्रम सफल नहीं रहा क्योंकि विभिन्न विभागों में आपसी तालमेल नहीं बैठ सका।
3- भूमि सुधार:- जोत की सीमा निर्धारण करने हेतु सिंचित और असिंचित क्षेत्र में भूमि सीलिंग एक्ट शुरू किया गया था। सीलिंग एक्ट में निर्धारित सीमा अधिक भूमि होने पर ऐंसी जमीन राज्य अपने अधिकार में कर लेगा। यद्यपि इस कानून का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो सका।
4- हरित क्रान्ति:- हरित क्रांति 1960 के बाद खाद्यान्न फसलों का स्थान नगदी फसलों ने लिया।
5- मिश्रित खेती:- सिंचाई पूर्व मिश्रित खेती होती थी। एक ही खेत में कई प्रकार की फसलें ली जाती थीं। धीरे-धीरे इसका स्थान एकल फसल चक्र ने ले लिया।
6- गेरूआ पर नियंत्रण:- 1960 के पूर्व गेहूं में लाल और काले गेरूआ रोग का व्यापक तौर से प्रकोप होता था। साठ के दशक में गेहूं अनुसंधार केन्द्र पंवारखेड़ा ने 65 नंबर गेहूं का नया बीज निकाला जो गेरूआ निरोधक था।
7- विपणन:- पूर्व में खरीदी हेतु निजी आढ़तों की व्यवस्था थी। इसमें गोपनीय तरीके से अनाज नीलाम किया जाता था। बाद में सरकार द्वारा नियंत्रित मंडियों की स्थापना हुई इसके लिए मंडी कानून बनाए गए जिसके तहत निर्वाचित पदाधिकारी मंडी का संचालन करते हैं।
8- भूमिहीनता:- नब्बे के दशक से गांवों में भूमिहीनता लगातार बढ़ रही है तथा जोतों का रकबा वर्ष प्रतिवर्ष घट रहा है।
9- कीटनाशक:- 1965 के पूर्व यदा कदा कीटों व इल्लियों को प्रकोप सुनने को आता था। 1965 से व्यापक तौर से कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल शुरू हुआ। इल्ली और कीटों व अन्य रोगों का प्रकोप बढ़ा।
१० दलहन व तिलहन:- 1970 के बाद से तिलहनी और दलहनी फसलों का रकबा हर साल कम होता गया।
11- खरतपवार:- सिंचाई के बाद नए-नए खरपतवार का व्यापक रूप से प्रकोप हुआ। रासायनिक खाद और नए बीजों से खरपतवार बढ़े। (यद्यपि कांस नामक खरपतबार समाप्त हो गया है)
1२ पड़त भूमि:- चारागाह और पड़त भूमि किसानों ने सिंचाई के बाद पड़ती भूमि तोड़ ली और कास्त करना शुरू की। इससे पशु चारे का अभाव हुआ।
13- सोयाबीन:- सोयाबीन से किसानों का मोहभंग हुआ और वैकल्पिक रूप से धान का रकबा क्रमश: बढ़ रहा है।
1- महिला और खेती:- मशीनीकृत खेती का आरंभ हरितक्रान्ति के दौरान (60 के दशक) शुरू हुआ जिससे महिलाओं के श्रम की अवहेलना हुई और महिालाओं के श्रम के दिन घटे। महिला मजदूरों में बेरोजगारी बढ़ी!
2- आयाकट कार्यक्रम:- आयाकट एक तमिल शब्द है जिसका अर्थ होता है - समग्र और समन्वित। 1974 से होने वाले बड़े बाँधों द्वारा सिंचाई को आयाकट कहा गया। जैसे तवा आयाकट, बारना आयाकट, चम्बल आयाकट आदि। कृषि उत्पादन में जुटे सभी विभागों को एक ही छत के अंतर्गत लाया गया। यद्यपि यह कार्यक्रम सफल नहीं रहा क्योंकि विभिन्न विभागों में आपसी तालमेल नहीं बैठ सका।
3- भूमि सुधार:- जोत की सीमा निर्धारण करने हेतु सिंचित और असिंचित क्षेत्र में भूमि सीलिंग एक्ट शुरू किया गया था। सीलिंग एक्ट में निर्धारित सीमा अधिक भूमि होने पर ऐंसी जमीन राज्य अपने अधिकार में कर लेगा। यद्यपि इस कानून का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो सका।
4- हरित क्रान्ति:- हरित क्रांति 1960 के बाद खाद्यान्न फसलों का स्थान नगदी फसलों ने लिया।
5- मिश्रित खेती:- सिंचाई पूर्व मिश्रित खेती होती थी। एक ही खेत में कई प्रकार की फसलें ली जाती थीं। धीरे-धीरे इसका स्थान एकल फसल चक्र ने ले लिया।
6- गेरूआ पर नियंत्रण:- 1960 के पूर्व गेहूं में लाल और काले गेरूआ रोग का व्यापक तौर से प्रकोप होता था। साठ के दशक में गेहूं अनुसंधार केन्द्र पंवारखेड़ा ने 65 नंबर गेहूं का नया बीज निकाला जो गेरूआ निरोधक था।
7- विपणन:- पूर्व में खरीदी हेतु निजी आढ़तों की व्यवस्था थी। इसमें गोपनीय तरीके से अनाज नीलाम किया जाता था। बाद में सरकार द्वारा नियंत्रित मंडियों की स्थापना हुई इसके लिए मंडी कानून बनाए गए जिसके तहत निर्वाचित पदाधिकारी मंडी का संचालन करते हैं।
8- भूमिहीनता:- नब्बे के दशक से गांवों में भूमिहीनता लगातार बढ़ रही है तथा जोतों का रकबा वर्ष प्रतिवर्ष घट रहा है।
9- कीटनाशक:- 1965 के पूर्व यदा कदा कीटों व इल्लियों को प्रकोप सुनने को आता था। 1965 से व्यापक तौर से कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल शुरू हुआ। इल्ली और कीटों व अन्य रोगों का प्रकोप बढ़ा।
१० दलहन व तिलहन:- 1970 के बाद से तिलहनी और दलहनी फसलों का रकबा हर साल कम होता गया।
11- खरतपवार:- सिंचाई के बाद नए-नए खरपतवार का व्यापक रूप से प्रकोप हुआ। रासायनिक खाद और नए बीजों से खरपतवार बढ़े। (यद्यपि कांस नामक खरपतबार समाप्त हो गया है)
1२ पड़त भूमि:- चारागाह और पड़त भूमि किसानों ने सिंचाई के बाद पड़ती भूमि तोड़ ली और कास्त करना शुरू की। इससे पशु चारे का अभाव हुआ।
13- सोयाबीन:- सोयाबीन से किसानों का मोहभंग हुआ और वैकल्पिक रूप से धान का रकबा क्रमश: बढ़ रहा है।
1 comment:
ये जानकारी बहुत ही अच्छी लगी। आपने कृषि का संक्षिप्त इतिहास ही लिख दिया है।
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