खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Saturday, May 17, 2008

नरवाई का कहर

रामकुमार गौर
मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के मकोड़िया गांव के कृषक रघुवीर के आंसू उस दिन थम नहीं रहे थे। 22 बर्षीय लड़की की हालत पागलों जैसी हो रही थी। रघुवीर के जैसी ही स्थिति उनके तीन भाईयों की भी थी। कारण था गांव में लगी आग। इस आग में रघुवीर का घर पूरी तरह झुलस गया। हरे पेड़ जल गए। खलियान में बंधे दो जानवर जल गए। इस आग की घटना में रघुवीर पूरी तरह बर्बाद हो गया
सम्भवत: मकोड़िया गांव की यह घटना नरवाई की आग से इतनी बड़े नुकसान की इस वर्ष की सबसे बड़ी घटना है। लेकिन बात होशंगाबाद जिले के इस गांव की नहीं है, मध्यप्रदेश के गेहूं प्रधान किसी भी गांव के लिए यह आम घटना हो गई है। अप्रैल माह में दर्जनों घटनाएँ ऐसी देखी जा सकती हैं, जिनमें किसानों के घर, खेत की फसल, जानवर, हरे पेड़ आदि जलकर खाक हो गये। नरवाई में लगाई जा रही आग से खेतों के हरे पेड़ तो जलते ही हैं साथ ही इस आग ने कई जगह तो सड़क के बाजू में लगे बर्षों पुराने पेड़ भी जला डाला है। गर्मी के दिनों में ऐसे दर्जनों पेड़ किसी भी सड़क किनारें देखे जा सकते हैं जो कि राख में तबदील हो चुके हैं। या मात्र ठूठ ही रह गये हैं कि यहां पर किसी समय में पेड़ थे। नरवाई की आग बेकसूर लोगों को क्षति पहुँचा रही है वही प्र6ाासन की नाक में दम कर रखी है। होशंगाबाद जिले की सोहागपुर तहसील के तहसीलदार जी पी शर्मा कहते हैं कि एक तहसील में एक फायर ब्रिगेड है और एक दिन में तीन से चार आगजनी सूचना एक समय में मिल रही हैं ऐसे में व्यवस्था बनाना बड़ा मु6किल हो गया है। एसड़ीएम अार पी पाण्डे के अनुसार सोहागपुर तहसील में नरवाई की आग बुझाने में अप्रैल माह के अंत तक लगभग एक लाख रूपये का डीजल जल चुका है। नरवाई में आग लगाने से किसान बाज नहीं आ रहे हैं। नरवाई की आग से होशंगाबाद जिले की पिपरिया नगर पालिका का दमकल विभाग भी परे6ाान है। इस संबंध में मुख्य नगर पालिका अधिकारी श्रीकृष्ण शर्मा ने सातौर पर कहा कि अब नरवाई में आग लगने की घटनाओं में पिपरिया का दमकल आग बुझाने नहीं जायेगा। उन्होंने कहा कि नगरीय प्र6ाासन के साफ आदे6ा हैं कि ऐसे स्थानों पर दमकल न भेजें। श्री शर्मा ने बताया कि मैं और दमकल विभाग रोज रोज की आग की घटनाओं से परे6ाान हैं। आपने बताया कि अभी हाल ही में एक स्थान पर आग बुझाने गये दमकल विभाग के दो सदस्य ड्रायवर अ6ाोक और कंडक्टर साबिर आग की लपट में झुलस गये। नरवाई में लगाई जा रही आग के प्रत्यक्ष दुष्परिणाम तो आये दिन सामने आ ही रहे हैं। इसके अप्रत्यक्ष नुकसान भी हैं जिन पर हमें विचार करने की आव6यक्ता है। नरवाई में लगाई जा रही आग से भूमी की उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही है। नरवाई की आग से एक तरफ तो वातावरण दूषित हो रहा है, वहीं भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है। आग से भूमि के कार्बनिक पदार्थ नष्ट हो रहे हैं, जिसका सीधा असर पैदावार पर पड़ेगा। कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक नरवाई की आग में नरवई तो जल रही है साथ ही जमीन में उत्पादन में सहयोग करने वाले जीवाणु भी दम तोड़ रहे हैं। पैदावार को बढ़ाने वाले वैक्टीरिया और वायरस आग में नष्ट हो रहे हैं। इसके इलावा नरवाई की आग बहुत हद तक वातावरण को दूषित तो कर ही रही है,
पहले मिश्रित खेती की जाती थी। इससे आग लगने का खतरा कम रहता था क्योंकि यदि आग लगती भी थी तो दूसरे खेत में आग लगने का कोई खतरा नहीं रहता था। परन्तु वर्तमान समय में एकल खेती करने के कारण्ा चारों तरफ गेंहू ही गेंहू नजर आता है। कटाई के बाद किसान को सबसे अच्छा तरीका नरवाई में आग लगाना ही सूझता है। यदि कोई किसान न भी चाहे तो भी उसका खेत जलना ही है क्योंकि नरवाई जलते जलते उड़कर जाती है एवं अगले खेत में आग लगा देती है। ग्राम बघवाड़ा के प्रदीप गौर बताते हैं की उनके सात एकड़ खेत में वे कभी नरवाई जलाने नहीं जाते हैं, आस-पास के खेतों से होकर आग आ जाती है एवं पूरे खेत की नरवाई जल जाती है। पिछले दस सालों में खेती में हार्वेस्टर की कटाई होने के बाद से भी नरवाई में आग लगाने की घटनाओं में इजाफा हुआ है। पहले हाथ की कटाई होती थी जिसमें चार से छह इंच तक की नरवाई छोड़ी जाती थी शेष फसल को काटकर थ्रेसर से गेंहू निकालते थे, जिससे कि जानवरों के खाने का भुसा भी तैयार हो जाता था। हार्वेस्टर की कटाई के बाद एक से लेकर डेढ़ फिट तक नरवाई खड़ी रहती है। साथ ही म6ाीन से निकला हुआ भुसा भी खेत में ही बिखर जाता है। हार्वेस्टर तो केवल टेंक में गेंहू ही इकट्ठा करती है बांकी का मटेरियल (नरवाई एवं भुसा) वहीं छोड़ जाती है। इसलिये जब इसमें आग लगाई जाती है तो यह वि6ााल रूप धारण कर लेती है। एवं हवा के साथ साथ एक से दूसरे दूसरे से तीसरे खेत में फैल जाती है। हार्वेस्टर चलने के बाद कई किसान भुसा बनवाते हैं एवं खेत में भुसा म6ाीन चलाई जाती है जो कि ट्रेक्टर में लगती है एवं नरवाई का भुसा बना देती है। भुसा म6ाीन चलाने वाले सोनखेड़ी गांव के ड्रायवर मनीष गौर बताते हैं कि जब खेत में भुसा म6ाीन चलाई जाती है तब इस म6ाीन को बहुत नीचे से चलाना पड़ता है ताकि ज्यादा से ज्यादा नरवाई कटकर ज्यादा भुसा बन सके। आपका कहना है कि यदि ऐसी स्थिति में म6ाीन में पत्थर आ जाये तो आग लगने की संभावना बनी रहती है। यदि ऐसे में आग लगे तो म6ाीन को तो खतरा है ही साथ ही नरवाई पूरी तरह जल जायेगी। आज के इस म6ाीनीकरण के समय में हमें विचार करने की आव6यक्ता है कि हम कैसे इन म6ाीनों का उपयोग करें जिससे कि इन समस्याओं से निजाद मिल सके। आज की आव6यक्ता है कि जमीन एवं पर्यावरण के प्रदूषण को बचाये रखें जिसके लिए किसानों के दृष्टिकोंण में परिवर्तन की आव6यकता है जिससे कि वह अपने अच्छे और बुरे की पहचान कर सके।
आलेख में शब्द 1150
रामकुमार गौर
नर्मदा कोलोनी,
ग्वालटोली
हो6ांगाबाद (मप्र)मो - 9827341570ई मेल ramkumargour@rediffmail.com

1 comment:

Udan Tashtari said...

एक सजगता और जागरुक प्रयासों की जरुरत है.