खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Saturday, July 31, 2010

पंजाब में कृषि का अभिशाप

1970 की हरितक्रान्ति ने पंजाब को भारत का अनाज भंडार दिया था। हमारे पूरे देश की भूख मिटाने के लिए पंजाब की कृषिभूमि का इतना दोहन किया गया जिसकी कीमत आज पंजाब के किसान अपने जीवन से दे रहे हैं। गुरूनानक जी ने कहा था कुदरत के सब वंदे किन्तुक पंजाब ने अपनी जमीन को रसायनों से इतना पाट दिया है कि आज कुदरत अपना बदला लेने को मजबूर हो कई है। कुदरत या प्रकृति को जो अपना गुलाम बनाने की भूल करता है उसका स्वनयं का अस्तित्वो ही खतरे में पड़ जाता है। विश्वम की कोई भी शक्ति प्रकृति से जीत नहीं सकती है। हम प्रकृति से हैं प्रकृति हमसे नहीं है।
आइए पंजाब को समझें इसके उत्तनर में जम्मू कश्‍मीर राज्य , दक्षिण में हरियाणा और राजस्थान, पूर्व में हिमाचल प्रदेश और पश्चिम में पाकिस्ताहन है। भारत के कुल भूभाग का पंजाब 1.5 प्रतिशत मात्र है। देश का डेढ़ प्रतिशत भूभाग वाला पंजाब देश के कुल गेहूं उत्पा दन का 22 प्रतिशत, चावल का 12 प्रतिशत, कपास का 12 प्रतिशत पैदा करता है1 फसल की गहनता 186 प्रतिशत है। प्रति हेक्टेियर खाद का उपयोग 177 किलोग्राम है जबकि इसका राष्ट्री औसत 99 किलोग्राम है। राज्य का भैगोलिक क्षेत्रफल 50.36 लाख हेक्टेतयर है जिसमें से 42.90 लाख हेक्टेरयर पर खेती होती है अर्थात अधिकांश भूमि पर खेती होती है केवल 7-8 लाख हेक्‍टेयर भूमि पर शहर, गांव, कारखाने, सड़कें आदि हैं। पंजाब के कुल क्षेत्र के 33.88 पर नहरों से सिंचाई होती है। सन 1970 में पंजाब में 1.2 लाख ट्यूबवेल थे जो सन 2009 में बढ़कर 12.32 लाख हो गए याने बारह जिलों के पंजाब में हर जिले में एक लाख से अधिक ट्यूबवेल हैं। 1980 में 739 एमएम औसत वर्षा होती थी जो सन 2006 तक घटकर 418.3 एमएम रह गई है। पंजाब के 40 ब्ला में भूमिगत जल 50 फुट और नीचे चला गया है। एक अनुमान के अनुसार सन 2023 तक 66 प्रतिशत क्षेत्र का पानी वर्तमान स्त से 50 फुट नीचे और पंजाब के 34 प्रतिशत क्षेत्र का जल स्त0 वर्तमान स्तेर से 70 फुट नीचे चला जाएगा। पानी के नीचे जाने का मतलब भूमि का रेगिस्ताचन में बदल जाना है। आज भी पानी का इतना संकट है कि 10 जून के पूर्व धान की खेती की सरकार से अनुमति नही है। कुंए और तालाब सूख गए हैं हेंडपम्पस की स्थिति पूछिए मत।
अब सुनिए देश के कुल कृषि क्षेत्र का 1.5 प्रतिशत पंजाब जबकि देश के कुल कीटनाशकों का 18 प्रतिशत पंजाब की खेती में उपयोग होता है पंजाब मालवा क्षेत्र का कपास बेल्टश पूरे पंजाब का सिर्फ 15 प्रतिशत क्षेत्र है और इसमें पूरे पंजाब का 70 प्रतिशत कीटनाशकों का उपयोग होता है। एक अध्य यन के अनुसार पंजाब का मालवा क्षेत्र देश के कुल भूभाग का 0.5 भाग है जबकि यह पूरे देश के कीटनाशकों का 10 प्रतिशत उपयोग में लाता है। फिरोजपरु, फरीदकोट, मुक्तशसर, भंटिंगा, मांसा और संगरूर जिले रसायनों के अत्य धिक प्रयोग वाले जिले हैं। इनकी जमीन रेगिस्ता री होती जा रही है। इस क्षेत्र का मलसिंहवाला गांव तो पूरा का पूरा बिकने को तैयार है।
रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अत्यहधिक उपयोग से जमीन के पोषक तत्व , सूक्ष्मै जीवाणु और केंचुए आदि खत्मय हो गए हैं। कृषि भूमि में जरूरी पोषक तत्वों जैसे जिंक, सल्फ , जस्ताप, लोहा, जैविक कार्बन आदि बिलकुल नष्टय हो गए हैं। अनवर जमाल दिल्ली के डारेक्टोर ने एक डॉक्यूबमेंटरी फिल्म् पंजाब की खेती पर बनाई है। HARVEST OF GRIEF (दुखों की खेती. अधिक जानना चाहते हैं तो 12 अप्रैल 2010 का इंडियन एक्सचप्रेस पढ़ें।) इस फिल्म के अनुसार पंजाब में खेती के असफल होने के अनेक कारणों में एक भागड़ा बांध परियोजना का फैल होना और सिंचाई के पानी की ऊंची लागत होना भी है। प्रफुल्ल विदवई और वंदना शिवा जैसवे बड़े पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के सम्मुतख इस फिल्मो का प्रदर्शन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर दिल्लीे में किया गया था। पंजाब में किसान उधारी के चक्र में फँस गया है। आत्महत्याओं की संख्या में बहुत वृद्धि हो रही है। केमिकल पर आधारित खेती, खराब होती जमीन, पानी का दूषित होना और कर्ज के कारण किसान आत्मंहत्यात कर रहे हैं।
पंजाब के 1410 ब्‍लाक में से 103 ब्ला्कों में भूमिगत जल खतरे के निशान से भी नीचे चला गया है। सेन्ट्र ग्राउन्डस वाटर बोर्ड के अनुसार पंजाब के 12 ब्ला भूमिगत जल के डार्कजोन में गए हैं। जालंधर, मोगा और लुधियाना क्षेत्र में पानी का दोहर 200 से 250 गुना और मोगा के निहालसिंगवाला ब्लामक में 400 गुना पानी का दोहन हुआ है। विशेषकर धान की खेती के लिए जल का दोहन बढ़ा है। 2009 में NASA के वैज्ञानिकों ने भूमिगत जल और खेती के नष्ट होने की चेतावनी दी थी। गतवर्ष नासा ने चेतावनी दी कि उत्तेर भारत के कुछ क्षेत्रों में भूमिगत जल सेटेलाइट से दिखना बन्द हो गया है। इसलिए पंजाब में सरकार ने 10 जून से पहले धान की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया है। पंजाब में वर्षा का औसत भी कम होते जा रहा है। पानी नहीं गिरने से भूमिगत जल के अत्यनधिक दोहन के कारण सरकार भी मुफ्त बिजली की नीति बन्दइ कर रही है बिजली के बिल भरने में ही अनेक किसान दिवालिया हो जाएंगे। पंजाब में किसान सबमर्सिबल पम्पइ लगाने लगे हैं। डार्क जोन में 450 फीट पर पानी मिलता है। सबमजर्सिबल पम्पों से हुई हानि को बरसात भी पूरा नहीं कर सकती है।
खेतों में रसायनों के प्रयोग और अत्य धिक भूमिगत जल के दोहन के कारण भयंकर बीमारियां फैल रही हैं। ये रोग पटियाला और अमृतसर की ओर फैल रहे हैं। हाल ही में विकलांग बच्चोंद के जन्म्की संख्याि बढ़ने लगी है। मालवा क्षेत्र के 149 बीमार बच्चों में से 80 प्रतिशत के बालों में यूरेनियम की अत्यिधिक मात्रा पाई गई है। कई लोग इसे अफगानिस्ता में अमेरिका द्वारा यूरेनियम के बामों का प्रभाव बताते हैं। एक अध्येयन के अनुसार पंजाब का 80 प्रतिशत पानी मनुष्यों के पीने लायक नहीं रहा है। 2001-09 के बीच अकेले मुक्तबसर जिले में 1074 व्योक्तियों की केंसर से मृत्यु हुई है और 668 गंभीर अवस्था। में हैं। मालवा क्षेत्र में केंसर अस्प्ताल नहीं होने से लोग बीकानेर इलाज के लिए जाते हैं। फोरेंसिक लेब पटियाला ने 12 जिलों के खून के सेम्पकल लिए जिनमें 6 से 13 प्रतिशत पेस्टिसाइड खून में मिला है। डॉ. अम्बेंडकर नेशनल इंस्टी ट्यूट जालंधर ने 34 गांवों के पानी के हेंडपम्पों में यूरेनियम पाया है जिनमें मांसा जिले की स्थिति गंभीर है।
भटिंडा जिले में यूरेनियम की सान्द्रकता 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाई गई जबकि यह 9 से अधिक नहीं होना चाहिए। पंजाब सरकार इन गंभीर क्षेत्रों में 200 आर.. रिवर्स सिस्टकम लगा रही है परन्तुन वैज्ञानिकों के अनुसार आर.. सिस्ट्म से हेवीमेटल्स3 जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, लोहा आदि को दूर नहीं किया जा सकता है। ग्रीनपीस ने भटिडा, फरीदकोट, मांसा, संगरूर, मुक्त सर और मोगा जिलों में स्थिति गम्भीोर पाई है।
भैंस का दूध भी प्रदूषित हो गया है। 2500 लोगों की मृत्यु के बाद बिसरा की जांच की गई जिसमें डी.डी.टी. र्इंधन और इंडोसल्फाभन रसायन मिले हैं। 10 वर्ष से कम और 10-35 वर्ष के बच्चों में केंसर पाया गया। बच्चे
बचपन में बुढ़ा गए हैं। जोड़ों का दर्द, गठिया, और कंकाल फ्लोरोसिस के मरीज बढ़े हैं। त्व चा फेंफड़ों का केंसर भी बढ़ा है। कुल मिलाकर पंजाब की खेती अभिशाप बनते जा रही है।
प्रो. कश्मीर सिंह उप्पल, मो. 09425040457

श्री प्रो. कश्मीर सिंह उप्पल सेवा निवृत्तक प्रोफेसर हैं। वे मध्य प्रदेश के इटारसी नामक क़स्बे में रहते हैं। इटारसी से ही प्रकाशित एक साप्ता्हिक अखबार नगरकथा में आपका नियमित कॉलम प्रकाशित होता है। यह आलेख उनकी अनुमति से खेत खलियान में प्रकाशित किया जा रहा है। उनसे सीधे सम्पहर्क मो. नं. 09425040457 पर किया जा सकता है। खेत खलियान की ओर से शिवनारायण गौर

1 comment:

अविनाश वाचस्पति said...

आज दिनांक 19 अगस्‍त 2010 के दैनिक जनसत्‍ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ में आपकी यह पोस्‍ट कुदरत का बदला शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्‍कैनबिम्‍ब देखने के लिए जनसत्‍ता पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।