जीएम भगाओ-देश बचाओ अभियान के तहत इन दिनों मध्यप्रदेश में जीएम फसलों के खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के समर्थन में हाल ही में विख्यात फिल्म निर्देशक महेश भट्ट एक दिन भोपाल आए। उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म पॉयजन ऑन द प्लेटर भी इस मुद्दे पर बनाई है। अपनी भोपाल यात्रा के दौरान भारत भवन में इस फिल्म का भी एक शो किया गया। भारी संख्या में इस फिल्म को देखने लोग आए। जीएम के नकारात्मक प्रभावों को दिखाने वाली इस फिल्म का निर्देशन अजय कंचन द्वारा किया गया है।
श्री महेश भट्ट का कहना था कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और सरकार की मिली भगत से जीएम फसलों को देश में स्थापित किया जा रहा है। इसके खिलाफ खड़े होना जरूरी है। अमेरिका सीधे हमारे खाद्यान्न पर कब्जा करके हमारी थाली में जहर परोसना चाह रहा है। उनका कहना था कि बीटी कॉटन के बाद अब बीटी बैंगन कीपूरी ताकत से विरोध करने की जरूरत है, क्योंकि सरकार जल्दी यह यह बैंगन बाजार में लाने जा रही है। जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी के सदस्य जीन वैज्ञानिक डॉ. पुष्प भार्गव ने कहा कि अमेरिकी भारत पर कब्जा जमाना चाहते हैं। यहां 60 फीसदी लोग सीधे कृषि से जुड़े हैं, इसलिए वे कृषि पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कमेटी में जितने वैज्ञानिक सदस्य हैं वे लोभवश इसका विरोध नहीं जताते। डॉ. भार्गव ने कहा कि बीटी बैंगन से कई तरह की बीमारियों की आशंका है। जैसे मानवन शरीर में अमाशय में घाव, किडनी में खून का रिसाव, बच्चों के मृत्युदर में बढ़ोत्तरी से लेकर फेफड़ों में सूजन जैसे रोगों लोग पीड़ित हो सकते हैं।
क्या है जीएम
सामान्य पौधों की कोशिकाओं में एक अलग किस्म का जीन डालकर जीएम खाद्यान्नों का सृजन किया जाता है। यह जीन अक्सर गैर भोज्य स्रोतों से लिया जाता है जैसे कि जीवाणु, विषाणु, मकड़ी , बिच्छू, सूअर, केंचुए आदि। इसके अलावा आनुवंशिक प्रोद्योगिकी की प्रक्रिया के कारण भी पौधों की आनुवंशिक बनावट में बदलाव आता है जिसके कारण मानव एवं पशु स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
सवाल पर्यावरण का भी
क्या आप जनते हैं कि एक बार खेतों में उत्पादित हो जाने पर जीएम खाद्यान्नों को वापस नहीं बुलाया जा सकता है। क्योंकि यह जीवित पौधे इसलिए इनका पूरी तरह से नाश नहीं हो सकता है एवं इनके कई हानिकारक प्रभाव हैं जेसे नए किस्म के कीट एवं बीमारियां, कीट एवं खरपतवार नाशकों से प्रतिरोधक क्षमता विकसित न होना, लाभदायक कीटों का नाश, मिट्टी की गुणवत्ता पर प्रतिकूलप्रभाव, रासायनिक पदार्थों का अधिक उपयोग एवं पारिस्थितिक तंत्र में हानिकारक बदलाव। गत कुछ वर्षों के दौरान भारत में बीटी कॉटन के उत्पादन के कारण इन प्रतिकूल प्रभावों को देखा गया है जबकि फिलहाल भारत में यही एक मा्त्र सरकार अनुमोदित जी. एम. फसल है।
शिवनारायण गौर
4 comments:
हमारी सेहत और कृषि दोनों के लिए ही खतरनाक है यह।
बिना बहुत और अनुसंधान के ये बीज सब आम किसानों को नहीं बेचे किया जाने चाहिए।
घुघूती बासूती
क्या बात है... ये प्रशांत भाई को तो पहचान गया उनके आगे काली शर्ट में कौन है?
हा हा हा बढिया गुरु... जहर की आदत हो चली है..
बहुत खतरे वाली बात है देश के किसानों लिए भी और लोगों के लिए भी ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
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