खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Tuesday, February 23, 2010

खरबों खर्च, फिर भी नहीं सुधरे किसानों के हालात

गिरिराज अग्रवाल
जयपुर. हिमाचल प्रदेश में सोलन जिले के संतराम समेत करीब 40 किसान अब जान गए हैं कि रासायनिक उर्वरकों से पैदा होने वाली फसल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं है। इससे कई तरह की बीमारियां हो रही हैं। वहीं पैदावार घटने और लागत बढ़ते जाने से उन्हें भी कोई फायदा नहीं पहुंच रहा। अब उन्होंने जैविक खेती करने का फैसला किया है।

हाल ही में राजस्थान के नवलगढ़ दौरे पर आए इन किसानों ने बताया कि पहले और दूसरे साल ऐसी खेती से पैदावार जरूर कम होगी, लेकिन पानी और खाद-बीज में बचत हो जाएगी। जैविक उत्पाद का पैसा भी करीब 30 प्रतिशत ज्यादा मिलेगा।

इससे पर्यावरण संतुलन बना रहेगा। संतराम का कहना है कि सरकार ने हाल ही न्यूट्रिएंट बेस्ड सब्सिडी के नाम पर यूरिया महंगा कर दिया है। अन्य खाद भी महंगे हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब उर्वरकों के बजाए जैविक खाद पर सब्सिडी देनी चाहिए।

पांच साल में साढ़े तीन लाख करोड़ सब्सिडी

सरकार उर्वरक कंपनियों को बीते पांच साल में साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की सब्सिडी दे चुकी है। लेकिन कृषि जोत छोटी होने से अधिकांश किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाता। लगभग 80 फीसदी किसानों के पास 4 हैक्टेयर से कम और 60 फीसदी किसानों के पास 2 हैक्टेयर भी जमीन नहीं है। ऐसे में उनकी लागत भी नहीं निकल पाती है।

किसान क्यों करते हैं खुदकुशी?

वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ के मुताबिक देशभर में वर्ष 2002 से 2006 के बीच में 17, 500 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। कारणों में कर्ज का बोझ, फसल की पर्याप्त पैदावार नहीं मिलना और मानसिक तनाव प्रमुख हैं। हालांकि इससे असहमति जताते हुए केंद्रीय कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन डॉ. एस.एस. आचार्य कहते हैं कि खेती की लागत बढ़ी है तो कृषि उत्पादों के दाम भी बढ़े हैं।

कंपनियों को कैसे मिलती है सब्सिडी?

उर्वरक बनाने में कंपनियों की लागत बहुत ज्यादा आती है, जबकि किसानों को उर्वरक रियायती दर पर मुहैया कराए जाते हैं। इसमें घाटे वाली राशि और निश्चित मार्जिन जोड़ते हुए सरकार कंपनियों को अनुदान देती है। अब सरकार चाहती है कि यह अनुदान सीधे किसानों को मिले।

यह हो सकता है समाधान

जैविक कृषि विशेषज्ञ मुकेश गुप्ता का कहना है कि मौजूदा भौगोलिक हालात में हमें रासायनिक के बजाय जैविक प्रजनन प्रबंधन लागू करना पड़ेगा। प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग से ही टिकाऊ खेती संभव है। केमिकल न्यूट्रिएंट बेस्ड सब्सिडी से फिर देश में हंगामा मचेगा, इसलिए बायोलॉजिकल न्यूट्रिएंट पर भी सब्सिडी दी जानी चाहिए।

सस्ती लोकप्रियता

उर्वरकों पर सब्सिडी के मामले में सरकारें सस्ती लोकप्रियता हासिल करती हैं। किसानों को सीधे सब्सिडी देने के नाम पर भी यही होगा। सब्सिडी का 60 फीसदी हिस्सा फर्टिलाइजर कंपनियां ले लेती हैं। किसानों में भी बड़े काश्तकार ज्यादा फायदा लेते हैं। - सोमपाल शास्त्री, पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री

सीधे सब्सिडी मुश्किल

किसानों को सीधे सब्सिडी देना आसान नहीं है। खाद कंपनियों की मजबूत लॉबी ऐसा नहीं होने देगी। हालांकि किसानों को सीधे सब्सिडी मिलने से उवर्रकों, पानी और बिजली की खपत ज्यादा नहीं बढ़ेगी। - कमल मोरारका, पूर्व केंद्रीय मंत्री
साभार दैनिक भास्‍कर

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