खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Tuesday, November 10, 2009

बलि चढ़ी दाल

सुनील
दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ — कुछ साल पहले किसी बम्बंईया फिल्मत के लिए यह गीत लिखने वाले गीतकार ने कभी सोचा भी न होगा कि जो दाल हमारे सादे भोजन का हिस्साो है, एक दिन वह इतनी महंगी हो जाएगी। आज अरहर की दाल 85 से 90 रुपए किलो हो चली है। पांच साल पहले यह 34 रुपए किलो थी। ढाई गुने से भी ज्याकदा उसके दाम बढ़ गए हैं। चने को ही लें एक जमाना था जब चना अनाज से सस्ताी होता था। अन्नक का अभाव होने पर लोग चने खाकर गुजारा करते थे। आज चने के दाम अनाज के दुगने से भी ज्याअदा हैं। इस सबके लिए सरकार कभी जमाखोरी और कभी फसल बिगड़ने को दोष दे रही है। लेकिन बात इतनी सरल, सतही और तात्का लिक नहीं है।
हमारा देश दालों का प्रमुख उत्पाोदक देश है। यहां तुअर अरहर, चना, मूंग, मसूर, उड़द, मोगर, चवला, सेम, बटरा, तिवड़ा, खेसारी आदि अनेक तरह की दालें पैदा होती हैं। ये देश की खेती, अर्थव्यहवस्थाभ, खुराक, परंपरा, संस्कृाति और जनजीवन का अभिन्नक हिस्सान हैं। अलग-अलग भाषाओं-बोलियों में उनके कई नाम हैं। कई मुहावरे व कहावतें उनको लेकर प्रचलित हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर उनकी खेती बहुत कम होती है। इसलिए जब देश में दालों की कमी हो तो उसे आयातों से पूरा करना भी आसान नहीं है।

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