खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Monday, April 6, 2009

हारवेस्टर की देन नरवाई की आग

होशंगाबाद जिले के गोलगांव के खेतों में पिछले दिनों लगी आग से 40 किलोमीटर के खेत जल गए। गेहूं को काटने के बाद खेत में छूटा गेहूं का निचला हिस्सा जिसे नरवाई कहते हैं, में लगी इस आग से छोटे-बड़े सैकड़ों झाड़-पेड़ जल गए। आग हवा के साथ फैलती गई और बीच में आने वाले कई गांवों से होती हुई आगे बढ़ गई। सिचाई पंपों और ट्रेक्टर से खेत को बखरने वाली एक मशीन कल्टीवेटर के सहारे गांवों को जलने से बचा लिया गया। खेत में आग लगने की ये पहली घटना नहीं है बल्कि यह इन दिनों अमूमन पूरे मध्य प्रदेश के गेहूं की खेती वाले इलाके की आम घटना हो गई है। हर साल कुछ गांवाेंं और जानवरों का जलना सामान्य-सी बात है। इस साल तो एक व्यक्ति के भी होशंगाबाद जिले में जलने की खबर भी अखबारों के अन्दर के पन्नों पर छपी। मसलन अब नरवाई से लगने वाली खेतों की आग बड़ा रूप लेने लगी है।
गौरतलब है कि खेतों में आग लगाने की ये घटनाएं पिछले दशेक सालों में बढ़ना शुरू हुई हैं। तीन साल पहले से तो सरकार ने भी इन घटनाओं को गम्भीरता से लिया है। अब स्थानीय प्रशासन हर साल निर्देश जारी करता है कि नरवाई में आग नहीं लगाई जाए। यदि आग लगाने वाले के बारे में जानकारी मिले तो फिर सरकार कानूनी कार्यवाही करने की बात भी करती है। किन्तु असल में ये मुद्दा इतना आसान नहीं हैं। एक बात तो यह है कि आग लगाने वाले की तलाश करना लोहे के चने चबाना जैसा है। जिस खेत से आग लगी है केवल उसके बलबूते इस बात को तय नहीं किया जा सकता है कि आग किसने लगाई है। वैसे तो ये आग खेत की नरवाई को जलाने के लिए लगाई जाती है लेकिन जब खेत में आग लगती है तो केवल नरवाई ही नहीं जलती बल्कि इससे उस जगह पर आने वाले तमाम जीव-जन्तु, पक्षी और यहां तक की जमीन तक जल जाती है। खेती के जानकार कहते हैं कि खेतों की आग के कारण जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले जीवाणु दम तोड़ रहे हैं। यही नहीं इससे वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है।
यदि असली समस्या की जड़ को पहचानने की कोशिश की जाए तो असल में खेती में आधुनिक मशीनों का उपयोग इसका एक बड़ा कारण दिखाई देता है। हार्वेस्टर के विकास ने इस समस्या को बढ़ाया हैं। पहले जब गेहूं की फसल को हाथों से काटा जाता था तब तो नरवाई का केवल चार पांच इंच का बहुत छोटा हिस्सा जमीन में रहता था जो कि बखरनी के समय खत्म हो जाता था। इसे अलग से हटाने की जरूरत नहीं होती थी। लेकिन हार्वेस्टर से कटाई के कारण नरवाई का एक बड़ा भाग, तकरीबन दस से बारह इंच का जमीन में छूट जाता है। इस बड़े भाग के कारण खेतों को बखरना आसान नहीं होता इसलिए इस समस्या से निजात पाने के लिए किसान इस नरवाई को जला देता है। जब इसमें आग लगाई जाती है तो उसे नियंत्रित करना मुश्किल काम होता है। इसका अच्छा खासा उदाहरण गोलगांव में लगी आग है जो कि चालीस किलोमीटर तक फैल गई। केवल नरवाई की आग का ही मसला नहीं है असल में हार्वेस्टर की कटाई ने जानवरों के लिए उपलब्ध होने वाले भुसे का संकट भी पैदा किया है। चूंकि जिस नरवाई से भुसा बनता था उसे अब जमीन में छोड़ना पड़ रहा है। आजकल एक नई भुसे बनाने की मशीन को भी इजाद किया गया है जिसका इस्तेमाल खेती में किया जा रहा है। किन्तु नरवाई की समस्या का समाधान इस मशीन से भी पूरी तरह से सम्भव नहीं हैं। असल में एक तो हर किसान इस मशीन का उपयोग नहीं करता और दूसरा इसका खर्चा अलग से लगता है।
फसल चक्र में आया बदलाव भी आग का एक बड़ा कारण है। दरअसल पहले मिश्रित खेती की जाती थी। इससे आग लगने का खतरा कम रहता था। यदि आग लगती भी थी तो एक खेत से दूसरे खेत में आग लगने का कोई खतरा नहीं रहता था। परन्तु वर्तमान समय में एकल खेती करने के कारण रबी के सीजन में चारों तरफ गेंहू ही गेंहू नजर आता है। कटाई के बाद किसान को सबसे अच्छा तरीका नरवाई में आग लगाना ही सूझता है।
मशीन का अंधाधुन्ध इस्तेमाल कई समस्याओं को पैदा कर रहा है ऐसे में इस पर विचार करने की आवश्यकता है कि मशीन का कितना व कैसा उपयोग किया जाए। मशीनों के निर्माण के काम में लगे लोग प्रयोग करके देखकर नई मशीनों को तैयार करें तो इस तरह के भावी संकट से बचा जा सकता है। किसानों को भी इस दिशा में सोचना चाहिए कि अपनी जमीन की उर्वरा शक्ति को नष्ट होने और पर्यावरण को कैसे प्रदूषित होने से कैसे बचाया जाए?
शिवनारायण गौर

गर्मी के दिनों में ग्रामीण इलाकों की एक बड़ी खबर आग लगने की घटनाओं की होती है। इन दिनों खेतों में गेहूं की नरवाई में आग लगाना आम बात है और इससे कई तरह की विकराल समस्‍याएं पैदा हो रही हैं। खेत खलियान की ओर से शिवनारायण गौर

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