रतलाम जिले के नयापुरा गांव में रहने वाले कृषक श्री दुलेसिंह इसी गांव के किसान धुलचन्द व अमरसिंह और रतलाम जिले के भवानीपुरा गांव के किसान मांगीलाल में एक समानता है। ये वे किसान हैं जो कपास की खेती करतहैं। इन चारों किसानों ने करीब चार साल पहले अपने खेत में कपास के बुलेट 707 नामक बीज को बोया था। लेकिन कम्पनी के वायदे के मुताबिक जब उनके कपास की पैदावार नहीं हुई तो चारों ने जिला उपभोक्ता फोरम में कम्पनी के विरूद्ध मुकदमा दायर कर दिया। शीघ्र ही वे यह मुकदमा जीत भी गए। लेकिन पैसा कम होने के कारण उन्हें राज्य स्तरीय आयोग में मुकदमा फिर से डाल दिया और वे जीत गए। इन चारों किसानों की एक जैसी कहानी उनकी जागरूकता और आम उपभोक्ताओं के लिए उपयोगी है।
इन चारों किसानों ने कपास के बीज रतलाम की ही एक मेसर्स मयुर एजेंसी से खरीदे थे। बीज को तैयार करने वाली सिकन्दराबाद की कावेरी सीड्स कंपनी लिमिटेड थी। जब किसानों ने ये बीज खरीदे थे तब कम्पनी ने वायदा किया था कि प्रत्येक पौधे में 120 से 150 डेण्डू (घेटे) एवं 20 से 25 क्विंटल कपास का उत्पादन होगा। लेकिन जब किसान ने इस बीज को लगाया तो उसके खेत में एक पौधे में केवल 12 से 19 डेण्डु ही लगे। डेण्डू कम लगने के कारण उत्पादन कम तथा घटिया होने की सम्भावना थी। इन किसानों ने इस बात की शिकायत अनुविभागीय अधिकारी, कृषि से की। उनकी इस शिकायत पर कार्यवाई करते हुए कपास की उक्त फसल का वैज्ञानिकों द्वारा निरीक्षण कियगया। वैज्ञानिकों की इस रिपोर्ट के मुताबिक उक्त प्रजाति के कपास के पौधों में शाखाएं सामान्य से काफी कम हैं तथा डेण्डू की औसत संख्या 10 से 12 प्रति पौधा है। फसल की वर्तमान स्थिति को देखते हुए इससे प्राप्त होने वाली उपज में से सामान्य 60 से 70 प्रतिशत तक कम होना सम्भावित है। उत्पादन कम होने की सम्भावना के बावजूद भी किसानों ने अपेक्षित कीटनाशक आदि का इस्तेमाल किया और इसके सबूत के लिए कीटनाशकों की खरीदी रसीद व खेत में डालने के बाद उसका पंचनामा बनवाया ताकि जरूरत होने पर वे इसका उपयोग कर सकें।
गौरतलब है कि कावेरी कम्पनी ने अपने बीज के प्रचार प्रसार हेतु जो पंपलेट छपवाया था उसके अनुसार फसल की अवधि 140 से 150 दिन, पौधे की उंचाई 4 से 5 फिट, डेण्डु का वजन 6 ग्राम तथा डेण्डु की संख्या 120 से 150 प्रति पौधा आदि जानकारी दी गई थी। लेकिन जब इन वायदों के मुताबिक पौधे तैयार नहीं हुए तो किसानों को इस बात का एहसास हो गया कि ये बीज निम्न और घटिया किस्म का हैं। और अंतत: वैसा ही हुआ। जब कपास का उत्पादन हुआ तो न तो उसकी गुणवत्ता अच्छी थी और न ही पैदावर पर्याप्त हुई थी।
किसानों ने बीज खराब होने की शिकायत उप संचालक, कृषि रतलाम को भी इस बात की शिकायत की थी। उप संचालक की शिकायत के बाद वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी एवं अनुविभागीय अधिकारी, कृषि रतलाम ने कपा कका निरीक्षण किया। उन्होंने जो रिपोर्ट सौंपी उसके मुताबिक फसल के निरीक्षण में उन्होंने पाया कि कपास की पौधे में एक ही शाखा है। तथा डेण्डू गिनने पर औसतन 10 से 12 ही पाए गए हैं जिससे निश्चित ही उत्पादन प्रभवित हो रहा है।
उत्पादन अच्छा और उत्तम गुणवत्ता का नहीं होने पर ये चारों किसान अपनी शिकायत लेकर जिला उपभोक्ता फोरम में गए। किसानों द्वारा प्रस्तुत किए गए सभी दस्तावेजों और साक्ष्यों के आधार पर फोरम ने पाया कि किसान को कम्पनी के द्वारा बेचा गया बुलेट 707 शंकर कपास बीज उत्तम गुणवत्ता का न होने के कारण बीज के सम्बन्ध में कम्पनी के वायदे के मुताबिक उत्पादन नहीं हुआ। इसकी भरपाई के लिए फोरम ने कम्पनी को कहा कि वो चारों किसानों को अलग अलग दस से पन्द्रह हज़ार की राशि दे। पर बात यहीं खत्म नहीं हुई कम्पनी भी यह राशि देने के लिए तैयार नहीं हुई और उसने अपनी अपील मप्र राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतिपोषण आयोग में कर दी। लेकिन वहां से उनकी अपील खारिज हो गई। पर किसान भी उन्हें भरपाई के लिए मिलने वाली राशि से सन्तुष्ट नहीं थे उन्होंने इस राशि को बढ़ाए जाने के लिए अपनी अपील राज्य उपभोक्ता आयोग में की।
इस अपील को मप्र राज्य उपभोक्ता विवार प्रतिपोषण आयोग ने स्वीकार कर लिया। शीघ्र ही इसका फैसला भी हो गया। फैसला किसानों के पक्ष में था। आयोग ने माना कि घटिया बीज के कारण किसान को कपास की पैदावार पर्याप्त नहीं मिली। वस्तुत: फोरम ने कम्पनी को निर्देश दिए कि वो उक्त चारों किसानों को 20 से 25 हजार रुपए उनके घाटे के भरपाई के लिए दे। किसानों की ये विजय उनके संघर्ष और जागरूकता दोनों का बखान करती है।
इन चारों किसानों ने कपास के बीज रतलाम की ही एक मेसर्स मयुर एजेंसी से खरीदे थे। बीज को तैयार करने वाली सिकन्दराबाद की कावेरी सीड्स कंपनी लिमिटेड थी। जब किसानों ने ये बीज खरीदे थे तब कम्पनी ने वायदा किया था कि प्रत्येक पौधे में 120 से 150 डेण्डू (घेटे) एवं 20 से 25 क्विंटल कपास का उत्पादन होगा। लेकिन जब किसान ने इस बीज को लगाया तो उसके खेत में एक पौधे में केवल 12 से 19 डेण्डु ही लगे। डेण्डू कम लगने के कारण उत्पादन कम तथा घटिया होने की सम्भावना थी। इन किसानों ने इस बात की शिकायत अनुविभागीय अधिकारी, कृषि से की। उनकी इस शिकायत पर कार्यवाई करते हुए कपास की उक्त फसल का वैज्ञानिकों द्वारा निरीक्षण कियगया। वैज्ञानिकों की इस रिपोर्ट के मुताबिक उक्त प्रजाति के कपास के पौधों में शाखाएं सामान्य से काफी कम हैं तथा डेण्डू की औसत संख्या 10 से 12 प्रति पौधा है। फसल की वर्तमान स्थिति को देखते हुए इससे प्राप्त होने वाली उपज में से सामान्य 60 से 70 प्रतिशत तक कम होना सम्भावित है। उत्पादन कम होने की सम्भावना के बावजूद भी किसानों ने अपेक्षित कीटनाशक आदि का इस्तेमाल किया और इसके सबूत के लिए कीटनाशकों की खरीदी रसीद व खेत में डालने के बाद उसका पंचनामा बनवाया ताकि जरूरत होने पर वे इसका उपयोग कर सकें।
गौरतलब है कि कावेरी कम्पनी ने अपने बीज के प्रचार प्रसार हेतु जो पंपलेट छपवाया था उसके अनुसार फसल की अवधि 140 से 150 दिन, पौधे की उंचाई 4 से 5 फिट, डेण्डु का वजन 6 ग्राम तथा डेण्डु की संख्या 120 से 150 प्रति पौधा आदि जानकारी दी गई थी। लेकिन जब इन वायदों के मुताबिक पौधे तैयार नहीं हुए तो किसानों को इस बात का एहसास हो गया कि ये बीज निम्न और घटिया किस्म का हैं। और अंतत: वैसा ही हुआ। जब कपास का उत्पादन हुआ तो न तो उसकी गुणवत्ता अच्छी थी और न ही पैदावर पर्याप्त हुई थी।
किसानों ने बीज खराब होने की शिकायत उप संचालक, कृषि रतलाम को भी इस बात की शिकायत की थी। उप संचालक की शिकायत के बाद वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी एवं अनुविभागीय अधिकारी, कृषि रतलाम ने कपा कका निरीक्षण किया। उन्होंने जो रिपोर्ट सौंपी उसके मुताबिक फसल के निरीक्षण में उन्होंने पाया कि कपास की पौधे में एक ही शाखा है। तथा डेण्डू गिनने पर औसतन 10 से 12 ही पाए गए हैं जिससे निश्चित ही उत्पादन प्रभवित हो रहा है।
उत्पादन अच्छा और उत्तम गुणवत्ता का नहीं होने पर ये चारों किसान अपनी शिकायत लेकर जिला उपभोक्ता फोरम में गए। किसानों द्वारा प्रस्तुत किए गए सभी दस्तावेजों और साक्ष्यों के आधार पर फोरम ने पाया कि किसान को कम्पनी के द्वारा बेचा गया बुलेट 707 शंकर कपास बीज उत्तम गुणवत्ता का न होने के कारण बीज के सम्बन्ध में कम्पनी के वायदे के मुताबिक उत्पादन नहीं हुआ। इसकी भरपाई के लिए फोरम ने कम्पनी को कहा कि वो चारों किसानों को अलग अलग दस से पन्द्रह हज़ार की राशि दे। पर बात यहीं खत्म नहीं हुई कम्पनी भी यह राशि देने के लिए तैयार नहीं हुई और उसने अपनी अपील मप्र राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतिपोषण आयोग में कर दी। लेकिन वहां से उनकी अपील खारिज हो गई। पर किसान भी उन्हें भरपाई के लिए मिलने वाली राशि से सन्तुष्ट नहीं थे उन्होंने इस राशि को बढ़ाए जाने के लिए अपनी अपील राज्य उपभोक्ता आयोग में की।
इस अपील को मप्र राज्य उपभोक्ता विवार प्रतिपोषण आयोग ने स्वीकार कर लिया। शीघ्र ही इसका फैसला भी हो गया। फैसला किसानों के पक्ष में था। आयोग ने माना कि घटिया बीज के कारण किसान को कपास की पैदावार पर्याप्त नहीं मिली। वस्तुत: फोरम ने कम्पनी को निर्देश दिए कि वो उक्त चारों किसानों को 20 से 25 हजार रुपए उनके घाटे के भरपाई के लिए दे। किसानों की ये विजय उनके संघर्ष और जागरूकता दोनों का बखान करती है।
9 comments:
बहुत अच्छी जानकारी कपास के बारे में . आभार.
'बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा' वाली बात इस मामले में मुझ पर लागू हो रही है।
इन तीनों किसानों को, जिला फोरम द्वारा मुआवजा दिलवाने तक की खबर तो थी किन्तु उसके बाद वाली सारी बातें आपके इस आलेख से ही मालूत हो सकीं।
देश के सारे किसानों तक यह आलेख पहुंचे-यह महत्व है इसका।
बहुत जरूरी जानकारी शिवनारायण भाई । क्या बी.टी. बैगन भी शुरु हुआ है ? सुना है सरकार से इसे हरी झण्डी मिल चुकी है ।
बधाई और शुभकामनाएं. अन्य किसानों को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.
जानकारी से अवगत कराने के लिए आभार।
bahut hi behtar. chhapte raho, people's men bhej do
प्रेरक प्रसंग |
Thanks for an important information
You made a few excellent points there. I did a search on the topic and almost not got any specific details on other sites, but then happy to be here, seriously, thanks.
- Lucas
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