एलर्जी की समस्या पैदा करने वाली और जहरीली गाजर घास के तेजी से हो रहे फैलाव पर चिंता जाहिर करते हुए वैज्ञानिकों ने इसे पर्यावरण और जैव विविधता के लिए उभरता बड़ा खतरा बताया है। उड़ीसा यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर व टेक्नॉलोजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक सुधांशु शेखर मिश्र कहते है कि आमतौर पर गाजर घास कहलाने वाली इस वनस्पति का वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है। इसके परागकणों से एग्जीमा, अस्थमा और त्वचा की कई बीमारियां होती है।
वे कहते है कि यह एक जहरीली वनस्पति है जो एलर्जी पैदा करती है। इससे कालाजार की समस्या तक हो सकती है। मुख्य रूप से अमरीका में पाई जाने वाली गाजर घास देश में सबसे पहले 1956 में पुणे मेें देखी गई थी। धीरे धीरे यह देश के हर हिस्से में फैल गईं। आल इंडिया को:आर्डिनेटेड रिसर्च प्रोग्राम से जुड़े वैज्ञानिकों ने कहा कि गाजर घास का तेजी से फैलाव पर्यावरण और जैवविविधता के लिए खतरा बन गया है। कई फसलों के अंकुरण और विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
गाजर घास के परागकणों की वजह से टमाटर, बैंगन, मिर्च जैसी सब्जियों के फूल गिर जाते हैं। दालों के फूलों पर गिरकर गाजर घास के परागकण एक ऐसा रसायन उत्सर्जित करते हैं जिससे पौधे की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया निष्प्रभावी हो जाते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक न केवल मनुष्यों में बल्कि गाजर घास, गाय और बकरी जैसे पशुओं में भी त्वचा की समस्या पैदा करती है। जब जानवर इसे खाते हैं तो उनके दूध का स्वाद कसैला हो जाता है। अगर लंबे समय तक ऐसे दूध का सेवन किया जाए तो मौत हो सकती है। गाजर घास के पौधे की लंबाई 1 से 1.5 मीटर तक होती है। इसकी पत्तियां गाजर की पत्तियों के जैसी होती हैं। हरेक पत्ती करीब 10 हजार बीज पैदा करती है। गाजर घास हर तरह की भूमि और जलवायु में उग सकती है। करीब 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसके बीजों का शीघ्रता से अंकुरण हो जाता है। (जनसत्ता 18 सितम्बर, 2008 से साभार)
Friday, September 26, 2008
खतरनाक है गाजर घास
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2 comments:
यह घास तब आई थी जब अमेरिका से गेंहू आयात किया गया था। आपने अच्छा मुद्दा उठाया है। अफसोस इस बात का है कि इस घास को समाप्त करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
वाकई बढ़िया..
चेतावनी सहित जानकारी..
साधुवाद..
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