खेत-खलियान पर आपका स्‍वागत है - शिवनारायण गौर, भोपाल, मध्‍यप्रदेश e-mail: shivnarayangour@gmail.com

Sunday, April 6, 2008

जैविक खेती अपनाते लोग

रामकुमार गौर
राजकुमार मोर्य मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के सोहागपुर ब्लाक के बोरी गाँव के किसान हैं। पिछले कुछ सालों से वे अपने खेत में रासायनिक खाद का बिलकुल इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। अब वे खेती को पूरी जैविक पद्धति से कर रहे हैं। वे किसी विचारधारा से प्रभावित होकर जैविक खेती नहीं कर रहे है। बल्कि खेती में लागत कम करने के उद्देश्य से लगातार खेती में नये नये प्रयोग करते रहते हैं। राजकुमार मार्य के पास आठ एकड़ जमीन है जिसमें वे गेहूँ 16 क्विं प्रति एकड़ एवं सोयाबीन 8-10 क्विं प्रति एकड़ के औसत से उत्पादन लेते हैं। जो रासायनिक खेती की तुलना में लगभग बराबर ही है और जब वे लागत के आधार पर उत्पादन देखते हैं खेती अब उनके लिए फायदे का सौदा हो गई है। राजकुमार भाई बताते है कि कुछ साल पहले जब वे अपने खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते थे तो खेती करने में घाटा हो रहा था। उनका मानना है कि आजकल जमीन में जीवों की मात्रा कम हो गई है इस कारण हमारी जमीन ठोस हो गई है। यह जमीन हमने कीटनाशक एवं नींदानाशक के अधिक उपयोग के कारण खत्म कर दी है। इसलिए वे अपनी खेती में कभी भी नींदानाशक एवं कीटनाशक का उपयोग नहीं करते हैं। जमीन में खरपतवार की निंदाई कराते है। आपका कहना है कि जमीन में केंचुये होना बहुत जरूरी है। असल में केंचुये जमीन को खाद तो देते ही है जमीन कठोर होने से भी बचाते हैं।
श्री मोर्य साल भर कुछ ऐसे प्रयोग करते हैं जिससे कि जमीन की उर्वरकता बची रहे। जैसे कटाई के बाद वे खेत में दो बार बखरनी करते हैं जिससे कि नरवाई जमीन में मिल जाती है। उनका कहना है कि अधिकांश लोग खेत में नरवाई को जलाते हैं जिससे कि जमीन खराब होती है। आपके घर पर गोबर गैस संयंत्र लगा हुआ है जिसमें कि एक सीजन में 4-5 ट्राली स्लेरी (गोबर की खाद) इक्ट्ठा हो जाता है इस स्लेरी को आप बोनी से पहले पूरे खेत में विछाकर बखरनी करते हैं। इसके बाद बोनी करते हैं। खरपतवार की निंदाई करते है। खरपतवार के लिए किसी भी प्रकार के नींदानाशक का उपयोग नहीं करते हैं।वे मानते हैं कि लोग प्रति एकड एक क्विंटल अनाज बोते हैं जो कि ठीक नहीं है क्योंकि यदि ज्यादा मात्र में अनाज बोंएँगे तो जमीन उतना पोषक तत्व पौधे को नहीं दे पाएगी जिससे पौधा कमजोर होगा और अंतत: इसका असर उत्पादन पर पड़ता है।
श्री मार्य अपने खेत में गेहूँ में 75 किलो प्रति एकड़ बोनी करते हैं। आप कहते है कि जहाँ लोग ज्यादा बोनी करके कम मुनाफा लेते हैं वहीं मैं कम बोनी करके अच्छा मुनाफा लेता हूँ। रासायनिक खाद का इस्तेमाल आप कम करते हैं जिसमें कि डीएपी क़ी मात्रा तो कम रखते ही है पहले पानी पर केवल 15 बोरी प्रति एकड़ के हिसाब से यूरिया डालते हैं। आपका मानना है कि यदि व्यक्ति रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम करे एवं जैविक खाद की मात्रा बढ़ाये तो उत्पादन तो अच्छा होगा ही लागत भी कम आएगी।निटाया ग्राम के नरेन्द्र चौधरी 25 एकड़ के किसान हैं वे 4 एकड़ खेत में पूर्णत: जैविक खेती करते हैं उनका कहना है कि गेंहू की फसल में कुल 4,000 रुपए एवं सोयाबीन की फसल में 3500 रुपए की प्रति एकड़ लागत शुरू से लेकर अंत तक आती है। यदि किसान जैविक खेती अपनाता है तो 1500 रुपए के लगभग गेंहू एवं 1000 रूपये के लगभग सोयाबीन की लागत बच जाती है जो कि रसायन एवं कीटनाशक पर खर्च होता है। जैविक खेती के बारे में ही होशंगाबाद जिले के रोहना गाँव के रूपसिंह राजपूत बताते है की हमारे खेतों की जमीन में से छोटे छोटे जीव जन्तु नष्ट हो गए हैं यदि जीव जन्तुओं की मात्रा जमीन में बढ़ जाए तो जमीन की उर्वरकता एवं उत्पादन दोनों ही बढ़ जाएँगें।जिन जीव जन्तुओं के पोषण रूपसिंह खेत में जीवामृत डालते हैं। यह जीवामृत वे 10 किलो गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 2 किलो गुड़ 2 किलो कोई भी दलहन एवं 1 किलो बड़ के पेड़ की मिट्टी 200 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार करते हैं। घोल 7-8 दिन पुराना होने के बाद जब खेत में पानी होता है तब थोड़ा थोड़ा जीव अमृत मुख्य नाली से डालते हैं। रूपसिंह का मानना है कि इस जीवामृत का प्रयोग किसान करे तो उत्पादन एवं फसल को देखकर ही अन्तर साफ नजर आता है आपकी 8 एकड़ जमीन में आप इसी जीवामृत का प्रयोग करते है। आपने एक एकड़ खेत में 1200 केले पेड़ लगाये है जिसमें पिछले 1 वर्ष से जीवामृत का प्रयोग कर रहे है। आपका मानना है कि जीवामृत कम लागत का खाद है एवं इस एक वर्ष में आपने हजारों रुपए बचाया है जो कि रासायनिक खाद पर खर्च होता। केले की फसल के उत्पादन के बारे में आपका कहना है कि 1200 पेड़ में यदि 1 पेड़ से 100 रुपये का केला बिकता हैं तो 1,20,000 के केले बिकेगें जो कि 1 एकड़ जमीन में कोई भी फसल नहीं बिकती है। रूपसिंह भाई बताते हैं की केले की फसल एक बार लगाने पर तीन बार फल देती हैे। अभी तक 14 माह में आपने एक एकड़ में 35,000 रूपये की लागत लगा चुके हैं। जीवामृत के प्रयोग से आप खाद बनाने में काफी सरलता महसूस करते हैं यह जीवामृत आपने खैरी गाँव के कृषक सर्वज्ञ दीवान एवं जिन्वान्या गाँव के किसान अशोक खोरे के यहाँ भ्रमण कर सीखा
खैरी गाँव के सर्वज्ञ दीवान तो हमेशा ही जैविक खेती के प्रयोगधर्मी किसान रहे हैं आप नाडेप, कच्चा नाडेप, वर्मीकम्पोस्ट जीवामृत कल्चर आदि खाद का प्रयोग घर बनाकर तो करते ही हैं साथ ही गाय, बैल के मरने के बाद उसे बाहर न फेंककर जमीन में गाड़ देते हैं जिसके ऊपर से नमक एवं गोबर डाल देते है। आपका कहना है कि 6 माह बाद बहुत ही अच्छा खाद इससे तैयार हो जाता है। यह खाद एक एकड़ जमीन के लिये पर्याप्त है। जिसमें गौ समाधी बनी जगह को खोदकर खेत में डाल देते है।
हो6ांगाबाद जिले के एक अन्य गांव पलासडोह के किसान उमाशंकर शर्मा का कहना है कि यदि जमीन में कंचुये की मात्रा रहती है तो कच्चा नाडेप बनाने में भी केंचुये इसे वर्मी कम्पोस्ट बना देते हैं। आप खेती में वर्मीकम्पोस्ट, नाडेप एवं गोबर गैस स्लेरी का प्रयोग करते है।जैविक खेती के मुद्दे पर कृषि विस्तार अधिकारी श्री आरक़ेदीक्षित का कहना है कि किसानों ने जमीन का स्वास्थ्य खराब कर दिया है । इसके स्वास्थ्य खराब करने में नरवाई में आग लगानाअधिक पानी देना, अधिक उर्वरक डालना अधिक बोनी आदि शामिल हैं। आपका कहना है कि जिस जमीन पर र्इंट का भट्टा लगता है वहाँ पर 5 साल तक कोई पेड़ पौधा नहीं ऊंगता है। हमारी खेती में हम प्रतिवर्ष आग लगाकर धीमा जहर दे रहे हैं। किसान भाईयों को नरवाई मे आग लगाने का काम बिल्कुल बंद कर देना चाहिये। उर्वरक की मात्रा तो किसान भाई प्रतिवर्ष बढ़ा रहे हैं परन्तु किसी प्रकार का जैविक खाद नहीं डाल रहे हैं। जो किसान जैविक खाद डालते है उनका अनुपात बहुत ही कम है आपका कहना है कि खेतों में लोग पानी खेतों में खोलकर घर आ जाते है। पानी खेतों में बहता रहता है एवं फसल को अधिक पानी मिलता है यह भी ठीक नहीं है। बोनी करने के लिये भी किसान ज्यादा मात्रा में बोनी करता है जो कि ठीक नहीं है।
दीक्षित जी का कहना है खेती में गलत तरीकों से खेती करने में कई हानियाँ है जिनमें किसानों को बचना चाहिये एवं जमीन की उर्वरकता बचाये रखने के लिये एवं कम लागत में अच्छा उत्पादन करने के लिये किसान को सही तरीके से खेती करना चाहिये।पिछले कई सालों से रासायनिक खेती के उपयोग से किसान जमीन की उर्वरकता नष्ट करते हुये चले आ रहे हैं। खेती में प्रतिवर्ष उत्पादन लागत बढ़ती ही जा रही है। खेती में लगने वाली सामग्री का मूल्य बढ़ते जा रहा है सांथ ही रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक का उपयोग भी बढ़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में ऐसे कम ही किसान है जो कि अपनी जमीन की उर्वरकता को बचाये रखे हैं।
आज की खेती की आवश्यकता है कि किसान को खेती की जरूरत भी मेहसूस करना चाहिये। किसान अपनी जरूरत को पूरा करने के लिये जमीन का दोहन करते हुये चला जा रहा है। हालाकि पिछले 4-5 सालों से कई किसान, किसान संगठन एवं संस्थायें (सरकारी एवं गैर सरकारी) जैविक खेती के प्रोत्साहन में लगे हैं। जिसके सार्थक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। जरूरत है किसानों की मानसिकता बदलने की।
रामकुमार गौर
नर्मदा कालोनी
ग्वालटोली , होशंगाबाद ४६१००१
मो 098273 41570

4 comments:

Sanjay Tiwari said...

अच्छी जानकारी.

Batangad said...

अच्छा ब्लॉग है। ऐसी जानकारियां ज्यादा लोगों तक पहुंचनी चाहिए।

Anonymous said...

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मीनाक्षी अरोड़ा said...

अच्छी जानकारी है, सफल प्रयोगों और किसानों के अनुभवों को उजागर करके ऐेसे कामों को प्रेरित किया जा सकता है।
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